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अदनासा-

R K Mishra " सूर्य "

#पौरुष Rama Goswami PRIYANK SHRIVASTAVA 'अरमान' Puja Udeshi Ashutosh Mishra Babita Kumari

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Juhi Grover

हुकुम चलाने की आदत कभी नहीं थी हमें, मग़र जब से हम पर हक तुम ने जताया है, ये नुस्खा हम ने हर बार तुम पर ही आज़माया है, हुकुमरान हमें ही बना हमें ही ज़ालिम ठहराया है। हर बार कोई न कोई यों ही मिला हमें पराया है, हमें अपना बता, हकदार बस अपना बताया है, खुशियों की तलब जगा कर वीरान ज़िन्दगी में,

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हुकुम  चलाने   की   आदत   कभी   नहीं   थी हमें,
मग़र  जब  से   हम   पर   हक   तुम  ने  जताया है,
ये नुस्खा हम ने  हर  बार  तुम पर  ही आज़माया है,
हुकुमरान हमें  ही  बना हमें  ही ज़ालिम ठहराया है।

हर बार कोई न  कोई  यों  ही  मिला  हमें पराया है,
हमें  अपना  बता,  हकदार  बस  अपना  बताया है,
खुशियों  की  तलब  जगा  कर  वीरान   ज़िन्दगी में,
दर्द  जगा  जहन्नुम   से   भी   बदतर  यों  बनाया है।

हाँ, मैं नाचती आई  हूँ  सबकी यों  ही उँगलियों पर,
बस इक  पेशा  यही ही तो तुम ने मुझे  सिखाया है,
तुुम ने हर  बार  जिस्म का  ही  व्यापार करवाया है,
चाहतों के  नाम  पर  जिस्म  को नीलाम  कराया है।

हाँ, मैं साधारण सी  बस  इक  तबायफ   ही  तो हूँ,
उजले होते  हुए  भी कालिख में  तुम्ही ने गिराया है,
मग़र ये  तो  बताओ, कौन  हूँ  मैं, कहाँ  से  आई हूँ,
तुम्हीं ने तो बेचकर बस  कोठे का मेहमान बनाया है।

बन सकती  थी  बेटी, बहन, बहु, माँ  भी  किसी की,
मग़र तुम  ने  बस  मुझे  स्त्री  बना  फायदा उठाया है,
तुम ने  पौरुष  को  त्याग  कायरता  को  अपनाया है,
सच कहूँ तो खुद को  ही खुद की नज़रों से गिराया है। हुकुम  चलाने   की   आदत   कभी   नहीं   थी हमें,
मग़र  जब  से   हम   पर   हक   तुम  ने  जताया है,
ये नुस्खा हम ने  हर  बार  तुम पर  ही आज़माया है,
हुकुमरान हमें  ही  बना हमें  ही ज़ालिम ठहराया है।

हर बार कोई न  कोई  यों  ही  मिला  हमें पराया है,
हमें  अपना  बता,  हकदार  बस  अपना  बताया है,
खुशियों  की  तलब  जगा  कर  वीरान   ज़िन्दगी में,

कृष्णा

दयाभाव,
सही अर्थ में पौरुष है,
मनुजता है,
जीवन्त हृदय का भाव।

©Flute Krishna Dr MonaTidke #पौरुष

BENAAM

*आज की कविता हर माँ के लिए....* वाह रे पौरुष तेरा..... माँ के दूध का कर्ज उसी के खून से चुकाते हो... दूध पीकर माँ का तुम उस दूध को ही लजाते हो... वाह रे पौरुष तेरा...तुम खुदको मर्द कहते हो... हर वक्त उसके सीने पर नज़र होती है तुम्हारी... हर वक्त उसके सीने पर नज़र होती है तुम्हारी... उस सीने में छुपी ममता कोई तुमको देख नहीं पाते हो....

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*आज की कविता हर माँ के लिए....*
वाह रे पौरुष तेरा..... 
माँ के दूध का कर्ज उसी के खून से चुकाते हो...
दूध पीकर माँ का तुम उस दूध को ही लजाते हो...
वाह रे पौरुष तेरा...तुम खुदको मर्द कहते हो...
हर वक्त उसके सीने पर नज़र होती है तुम्हारी...
हर वक्त उसके सीने पर नज़र होती है तुम्हारी...
उस सीने में छुपी ममता कोई तुमको देख नहीं पाते हो.... 
एक माँ ने जन्मा, पाला-पोसा है तुम्हे... 
एक माँ ने जन्मा, पाला-पोसा है तुम्हे.. 
बड़े होकर ये बात क्यू भूल जाते हो... 
तेरे हर एक आंसू पर अपनी हज़ार खुशियाँ कुर्बान कर देती है वो... 
तेरे हर एक आंसू पर अपनी हज़ार खुशियाँ कुर्बान कर देती है वो.... 
फिर एसा क्यू है की तुम उसके हज़ार आंसू भी नहीं देख पाते हो.... 
मंदिर में उसकी पूजा करते.. 
मंदिर में उसकी पूजा करते... 
घर में मर्यादा सिखाते हो... 
अरे उसे मर्यादा सिखाने वालों तुम्हे अपनी मर्यादा याद नहीं आती जब उसे अपने पैरों तले दबाते हो... 
वाह रे पौरुष तेरा... तुम खुदको पुरुष कहाते हो.... 
✍सर्वेश कु. दुबे *आज की कविता हर माँ के लिए....*
वाह रे पौरुष तेरा..... 
माँ के दूध का कर्ज उसी के खून से चुकाते हो...
दूध पीकर माँ का तुम उस दूध को ही लजाते हो...
वाह रे पौरुष तेरा...तुम खुदको मर्द कहते हो...
हर वक्त उसके सीने पर नज़र होती है तुम्हारी...
हर वक्त उसके सीने पर नज़र होती है तुम्हारी...
उस सीने में छुपी ममता कोई तुमको देख नहीं पाते हो....

Yogesh Yadav

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पुरुषार्थ को वो सार्थक करता , ऐसा वो गुणवानी है
वो महावीर वो परम वीर , वो हल धर माहा बलवानी है

जिसके कर्मो से धरा अपने स्वर्ण शिखा दिखलाती है
सावन भी उसके धर्मों में अपनी सार्थकता बतलाती है
जल के हर एक बूंदों से वो नव जीवन पनपाता है
जीव जंतु को मित्र माने पालन पोषण वो कर जाता है
समग्र विश्व का भूक मिटाता , ऐसा वो महा दानी है।

पुरुषार्थ को वो सार्थक करता , ऐसा वो गुणवानी है
वो महावीर वो परम वीर , वो हल धर माहा बलवानी है

शांत सरोवर की भांति उसकी छवि की ये पहचान है
साधारण वस्त्रों के अंदर वो अतुल्य पौरुष विद्यमान है
ना किसी से बैर, ना ही घमंड का तनिक उसको भान है
मैत्री भाव दिखता हरदम , ऐसा वो उत्तम शोर्यवन है
भोला भला शांत स्वभाव , उसकी यही निशानी है।।

पुरुषार्थ को वो सार्थक करता , ऐसा वो गुणवानी है
वो महावीर वो परम वीर , वो हल धर माहा बलवानी है

रण भूमि सा बना खेत में वो हल से धरा की सिना फाड़े है
किस्मत को है वो दव लगा के प्रकृति से भी वो लड़ डाले है
कठोर परिश्रम के चरम का वो पहेचान कराता है
मिट्टी के हर एक² कण का वो महत्व बतलाता है
पसीने से जो धरा को सींचे , ऐसा वो कर्मठी प्राणी है ।।

पुरुषार्थ को वो सार्थक करता , ऐसा वो गुणवानी है
वो महावीर वो परम वीर , वो हल धर माहा बलवानी है

भरी दोपहरी सूर्य देव को वो एक मात्र ललकारा है
आंधी तूफान बारिश भी उस्को परास्थ ना कर पाया है
कई आपदा आए उसपे फिर भी वो ना चकनाचूर हुआ
पौरुष के वो डोले लिए कर्म भूमि में  आकृष्ट हुआ
लौह तुल्य सा देह चमकता , ऐसा वो जिस्मानी है।।

पुरुषार्थ को वो सार्थक करता , ऐसा वो गुणवानी है
वो महावीर वो परम वीर , वो हल धर माहा बलवानी है hjcx

रजनीश "स्वच्छंद"

लाख टके की बात।। लाख टके की बात कहुँ मैं, सुनना है तो सुन लो। ज्ञान है बिखरा कोने कोने, जितना चाहो चुन लो। ना धन-दौलत, ना गुरु किताब,

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लाख टके की बात।।

लाख टके की बात कहुँ मैं,
सुनना है तो सुन लो।
ज्ञान है बिखरा कोने कोने,
जितना चाहो चुन लो।

ना धन-दौलत, ना गुरु किताब,
बस आंख खुली तुम रखना।
जीवन सब सिखला देती है,
बस ध्यान से पग तुम रखना।

हर पल सीख लिए आता है,
तुम बस उसे बटोरो।
आलस का बस त्याग करो तुम,
सोये रहना छोड़ो।

चार पहर, कब रुकता सूरज,
सीख कई दे जाता।
है रौशन ले वो ज्ञान पिटारा,
भीख कई दे जाता।

पका घड़ा फिर रूप न बदले,
निज को कोमल रखना।
छींट पड़े और तुम जग जाओ,
गंगा का वो जल रखना।

धूमिल कहां कब नाम है उसका,
ज्ञान-जोत जो लिए चला।
अमृत बहती वाणी से उसके,
जल-स्रोत जो पिये चला।

तुम कबीर हो, तुम रहीम हो,
पोथी से ज्ञान कहां आता है।
विद्या लक्ष्मी की दास नहीं,
धन से मान कहां आता है।

पेड़ में फल तो तब ही आता है,
जो जड़ में उर्वर पानी पड़े।
किश्तों में ज्ञान की पूजा कैसी,
इससे तो बस हानी बढ़े।

पौरुष पौरुष कह थकते नहीं,
बिन ब्यद्धि ये बेकार है।
जैसे नाक पे मक्खी बैठी हो,
और बन्दर लिए तलवार है।

अनुभव की महत्ता तो जानो,
सोना जलकर ही तो निखरता है।
कोई मोम रहा, तो तुच्छ वो नहीं,
अंधेरा हरने को ही तो पिघलता है।

मुर्गा बांग रहा देता,
खोल आंख तुम सोये थे।
चलो उठो कुछ करना है,
जो दिवा-स्वप्न में खोए थे।

©रजनीश "स्वछंद" लाख टके की बात।।

लाख टके की बात कहुँ मैं,
सुनना है तो सुन लो।
ज्ञान है बिखरा कोने कोने,
जितना चाहो चुन लो।

ना धन-दौलत, ना गुरु किताब,

Ashish Saxena

निशप्रांन पड़े कुछ चहरो पे फिर आज ललिमा छाई है उठो पौरुष के पोशक की अब घर में मैथिली आयी है प्यारी सी मुस्कान सजाए, प्रकृति का श्रिंगार सजाए मुख मंडल पे तेज़ लिए और कांधो पे कई बोझ उठाए पैरों में छन छन सी पायल, घर अंगना फिर गूंजेगी पास की देहरी की कोई माता पाँव कन्या पूजेगी

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निशप्रांन पड़े कुछ चहरो पे फिर आज ललिमा छाई है
उठो पौरुष के पोशक की अब घर में मैथिली आयी है

प्यारी सी मुस्कान सजाए, प्रकृति का श्रिंगार सजाए
मुख मंडल पे तेज़ लिए और कांधो पे कई बोझ उठाए

पैरों में छन छन सी पायल, घर अंगना फिर गूंजेगी
पास की देहरी की कोई माता पाँव कन्या पूजेगी


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