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Rakesh frnds4ever
White अ:- क्या हाल है !!?!!! मैं:- ,,,,,,,,,ठीक,,,, (हाल बेहाल हैं, सवाल ही सवाल है, जिंदगी भी जी का जंजाल है, बवाल ही बवाल हैं, शरीर केवल हाड़ मांस का कंकाल है....) ब:- क्या चल रहा है आज कल!!!??!! मैं:- ,,,,,,,कुछ नहीं,,,,, ((सब थम गया है, ये धरती ,अंबर ,पहाड़, हवाएं, नदी झरने ताल पोखर,,, ये शरीर , इसकी नलिकाएं, अवनालिकाएं, धमनियां, रक्त प्रवाह, हाड़ मांस गुर्दे दिल फेफड़े ,,,सब का सब___ जैसे जर गया है,,, दिल दिमाग मन चित सब _____जैसे जम गया है,,, ((घूटन में दम तोड़ती, तड़पती बस टूटी फूटी सांसे चल रही हैं....))) ©Rakesh frnds4ever #हाल_बेहाल अ:- #क्या हाल है!??!! मैं:- ,,,,,,,,,ठीक,,,, (हाल बेहाल हैं, सवाल ही सवाल है, #जिंदगी भी जी का #जंजाल है,बवाल ही बवाल हैं, शरीर केवल हाड़ मांस का #कंकाल है....) ब:- क्या चल रहा है आज कल!!!??!! मैं:- ,,,,,,,कुछ नहीं,,,,,
#हाल_बेहाल अ:- #क्या हाल है!??!! मैं:- ,,,,,,,,,ठीक,,,, (हाल बेहाल हैं, सवाल ही सवाल है, #जिंदगी भी जी का #जंजाल है,बवाल ही बवाल हैं, शरीर केवल हाड़ मांस का #कंकाल है....) ब:- क्या चल रहा है आज कल!!!??!! मैं:- ,,,,,,,कुछ नहीं,,,,,
read morekumaarkikalamse
पूछते है उनसे ही सवाल जिन्होनें जीना खुशहाल कर दिया, कोई पूछे उनसे भी जाकर जिन्होंने देश को कंगाल कर दिया। एक की कोशिशों से नहीं बदलेगी देश की छवि थोड़ा सब करो, बोली जिस जिस से मैंने ये बात, उसने जीना बदहाल कर दिया। आज माँग रहे हैं वो हिसाब उगने वाली फसल का बेशर्मों की तरह, जिन्होंने फायदे के लिए बिना अकाल, देश में अकाल कर दिया। मुल़्क, ये वतन, ये देश, है सबका किसी एक की जागीर तो नहीं, फ़िर क्यों जिसने जैसे चाहा वैसे इस देश का इस्तेमाल कर दिया।। #YQBaba #Kumaarsthought #YQDidi #ghazal #ग़ज़ल #देश #sawal #सवाल #अकाल #इस्तेमाल #बदहाल #kankal #कंकाल Saket दादा ये कैसा है
Sunil itawadiya
लफ्ज़ों के कुछ कंकड़ फेंको झील सी खामोशी में🙂😊 #cinemagraph #लफ्ज़ #खामोशी #कंकाल #love #life #collab #pyaar
Reena Sharma
उसके प्यार की डाइटिंग में मेरा हुआ बुरा हाल उसका हुआ ज़ीरो फिगर मैं बन गया कंकाल ©Reena Sharma #kankal #कंकाल #funny
Maneesh Ji
2009 जैसे तैसे जी रहा था 2019 अब तो आत्मा भटक रही है #NojotoQuote कंकाल तंत्र हो रहा है शरीर #कंकाल... #शरीर
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 3 - भरोसा भगवान का 'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक क
read moreshivanshu pandey
मेरे मोहल्ले की कहानी क्या कह दूँ क्या कह दूँ मैं उस ऊन वाले की कथा था कभी जो ऊन लादे इस गली में घूमता रंगून के रेसे बताकर झूठ भी था बोलता ऊन जिसका सदा उन अमीरों को महंगा लगा वो मर गया पूरी रात ना था घर गया वो मर गया वो जाड़े की शाम थी कौड़ी ना आज साथ थी तीनो विधवाओं की भूख थी राह उसकी देखती वो चमकता चाँद था उस बढाते पूस का था तो कपकपात। मगर लौट कर जाएगा न घर डर, बहनो की भूख का उस ऊन वाले की कथा रोज जो बाट जोहती चूल्हा जलातीं है संसार के तावे पे सपनों की रोटी पकाती है घंटी सुनते ही जो दौड़ आती है लौट कर आंगन में वो चूल्हा बुझाती हैं वो दो हड्डी कंकाल का अकेले था झेलता छत और चूल्हे की व्यथा दुखते पेटों की दास्तां उस ऊन वाले की कथा ऊन के वो रंग सारे वो उन चहरों में चाहता था इसलिए तो ऊन लादे गली शहरों में घूमता था कपकपाती देह में वो तेज बोलता था यही की गुलगुल गुलाबी ऊन ऐसी ना पाओगे कहीं वही फटी पतलून संग जर्जर सी बुशट में बिलखती तस्वीर से लिपटा हुआ खत शब्द खत के गूंजते थे शाम सुबह दोपहर कि खुद खाना बाद देकर तीनों को जहर खत में वो दो के चिल्लर भी तो थे जो जहर खाने को बाबा ने चहेते को दिए मुस्कराता था आज वो अंतिम गोला बेचकर आज तो जलसा मनेगा मंद मंद ये सोचकर फूलता था ना समाता चिल्लारों को देखकर जेब में खोंस लेता हर बार नयन सेककर बचपन तो था वहीं पर सपने गरीबी ले गयी था कमाता तो क्या हुआ उम्र महज चौदह की थी साइकल चलाता जा रहा था ठाकुर के खेत से हो गयी गलती उस रात लौंडे से सेठ के धुत्त होकर , गाली सुनाता चला रहा था कार भी जो गलती पहलें हूई थी हो गई इस बार भी बुढ़िया दौड़ी सुन हाल अपने लाल का चिथड़े कंकड़ से बीनकर चूर लायी कंकाल का बहन बोली हे पापी शत कोटि प्रभात दिए होते ना हो पाया इतना तो राखी वाले हाथ दिए होते कचहरी बैठी अंगूठे लगवा गए बुढ़िया पहले इसके कुछ कहती गुंडे घर मे आ गए हत्या नही दुर्घटना कहकर कालिख भी पोत गए और फेक चिल्लर मुँह पर कर स्वाभिमान पर चोट गए ऊन वाले कि कथा #मेरा भारत महान
ऊन वाले कि कथा #मेरा भारत महान
read moreSachchidanand Tripathi
सड़क पे पड़ा है वो भिखारी, मांगता है वो कुछ अन्न। पेट भरने की बस चाह है उसको, है समाज से बहिष्कार उसका।। है बना वो कंकाल, हड्डियों के ढांचे में है वो बेहाल। है भूख जब उसको सताती, मांगने निकल पड़ता है वो भिखारी।। होगी उम्र उसकी न आधी, कुछ विपत्ति पडी होगी उस पर भारी। दाने-दाने को वो है मोहताज, अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं से है वो अंजान।। है बना वो कंकाल घूमता है सड़कों पर, बना के आशियां वो सड़कों का। हर पल अन्न की चाह में, सड़क पे मर रहा है भिखारी।। अजेय #भिखारी#nojoto#nojotowriters#kavishala#hindinama#poetrylover#ajeyawriting#poem
Anil Siwach
|| श्री हरि: || 3 - भरोसा भगवान का 'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक की पीठपर ही सही, सोलह मील की यात्रा करके क
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