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धीमान संदीप
#OpenPoetry खुद से द्वंद्द हो तो संन्यास लेता है इंसान, वही अर्थ सब संन्यास का खो देता है इंसान। चित्त जब खुद से ही हो जाये हमारा निर्द्वद्दं, हर पल, हर परिस्थिती हो जाता है संन्यास। चुनाव में ही आता है देह भीतर अभिमान, मिटायें न मिटे तब छिपा भीतर स्वाभिमान। चुनाव ही देता है हम सबको गहरे-गहरे घाव दबा ही सकते है,मिटा नही,अपने सारे भाव। चुना जो विकल्प संन्यास का ,कहां रहे संन्यासी, बिन विकल्प स्वीकार हो,वही कहलाये संन्यासी। परिस्थिती नही, भाव और दशा है संन्यास, बिन विकल्प जो बहे, वही दशा है संन्यास। कहे इंसान हो परेशान,ला कर लू मै थोडा ध्यान, चुना विकल्प उसने,तोडने को अपना अभिमान। कहे शुद्ध आत्मा,रह कर भी संग समाज, बिना विकल्प लग जाये, जब भी मेरा ध्यान, हो जाऊं शून्य माञ,बिन विकल्प,बिन भाव, कहलाऊं संन्यासी, कुछ ऐसा लगाऊं ध्यान।
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
युवराज तुम युवराज हो, क्रिकेट धरा के, इतिहास के पन्नो पर अंकित है नाम तुम्हारा तुम्हे नमन, तुम प्रेरणा हो ,करोडों दिलो की तुम संन्यासी हो पर सदैव सज्जित
युवराज तुम युवराज हो, क्रिकेट धरा के, इतिहास के पन्नो पर अंकित है नाम तुम्हारा तुम्हे नमन, तुम प्रेरणा हो ,करोडों दिलो की तुम संन्यासी हो पर सदैव सज्जित
read moreओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
बहती नदियाँ कह रही, चलती हवाएँ कह रही,,,! पेड़ो की डाली झुम रही, बागों में कोयल कुक रही! ,वो नाच नाच के मोरनी, गुलशन से वो यह कह रही,,,,! तश्वीर बदल रही है,तकदीर बदल रही है,
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 13 - राजसी श्रद्धा 'भारत की जनसंख्या बराबर बढ़ती जा रही है। इस बढती हुई जनसंख्या को भोजन देने की समस्या कम विकट नहीॆं है।' मैं यात्रा कर रहा था रेल के द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में। उसमें एक स्वच्छ खद्दरधारी पुरुष सामने की बैठक पर विराजमान थे और बड़े उत्साह से वे अपने पास बैठे एक दूसरे सज्जन को समझा रहे थे कि अन्न उत्पादन के लिए सरकार की क्या-क्या योजना है। 'आप बुरा न मानें तो मैं एक घटना सुनाऊँ।' एक गरिक वस्त्रधारी सन्यासी बीच में बोल उठ
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 3 - भरोसा भगवान का 'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक क
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 3 - भरोसा भगवान का 'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक की पीठपर ही सही, सोलह मील की यात्रा करके क
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