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Juhi Grover
बड़े खुश हैं हम आज़ाद हो कर के, मगर आज़ादी का मतलब जानते हैं? कुछ भी करें आज़ाद है अब तो हम, अधिकार ही हैं,फर्ज़ कहाँ मानते हैं। (अनुशीर्षक में पढ़ें) बड़े खुश हैं हम आज़ाद हो कर के, मगर आज़ादी का मतलब जानते हैं? कुछ भी करें आज़ाद है अब तो हम, अधिकार ही हैं,फर्ज़ कहाँ मानते हैं। आज़ादी है मनमानी करते रहने की, शोरगुल में आवाज़ दबाते रहने की, अन्धा-धुन्ध दंगे भड़काते रहने की,
बड़े खुश हैं हम आज़ाद हो कर के, मगर आज़ादी का मतलब जानते हैं? कुछ भी करें आज़ाद है अब तो हम, अधिकार ही हैं,फर्ज़ कहाँ मानते हैं। आज़ादी है मनमानी करते रहने की, शोरगुल में आवाज़ दबाते रहने की, अन्धा-धुन्ध दंगे भड़काते रहने की,
read moreShikha Mishra
कठघरे में खड़ी वो रोती रही, सिसकती रही खुद को कोसती रही. महँगी पड़ी थी उसे न्याय की गुहार किसी ने न सुनी उसकी चीत्कार. बाहर इज़्ज़त उतारी गई अंदर न्याय के नाम पर इज़्ज़त उछाली गई. जिन ज़ख्मों पर मरहम की दरकार थी उन्हें और कुरेदा गया उसके ही चरित्र पर सवाल उठाया गया. गुनाह करने वाले को सज़ा मिलेगी, जरूरी नहीं पर जिसे सहना पड़ा उसका जीवन हर पल एक सज़ा बना. #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #YoPoWriMo #कठघरा #वेदना #बलात्कार #विधि-व्यवस्था #चीत्कार Thanks for the nomination Shubhang Dimri Further nominating Shreya Levy RADHIKA VINAYAK Divyanshu Singh Pankaj Chawla Kabita Mohanty Aparna Roy Chakrabarti Vaibhav Shukla Priya Bharadwaj Komal Tanwar for #कठघरा
#yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #yopowrimo #कठघरा #वेदना #बलात्कार #विधि-व्यवस्था #चीत्कार Thanks for the nomination Shubhang Dimri Further nominating Shreya Levy RADHIKA VINAYAK Divyanshu Singh Pankaj Chawla Kabita Mohanty Aparna Roy Chakrabarti Vaibhav Shukla Priya Bharadwaj Komal Tanwar for #कठघरा
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 4 - आस्तिक 'भगवान भी दुर्बल की पुकार नहीं सुनते!' नेत्रों से झर-झर आँसू गिर रहे थे। हिचकियाँ बंध गयी थी। वह साधु के चरणों पर मस्तक रखकर फूट-फूट कर रो रहा था। 'भगवान् सुनते तो है; लेकिन हम उन्हें पुकारते कहाँ हैं।' साधु ने स्नेहभरे स्वर में कहा। विपत्ति में भी भगवान को हम स्मरण नहीं कर पाते, पुकार नहीं पाते, कितना पतन है हमारे हृदय का।'
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
क्या, यूँ ही होता श्रृंगार रहेगा।।। कर्मों से नहीं, बस शब्दों से ही होता इनका श्रृंगार रहेगा। सरेआम या बीच सड़क क्या होता इनका चीत्कार रहेगा। क्या पूछूं मैं जाकर उनसे, शब्दों में जिनको बांध रखा। आज़ादी का भ्रम देकर, नज़रों से जिनको साध रहा। क्या पूछूं मैं बहनों से, मां बेटी और निज जाया से। संस्कार रहे मेरे कैसे, स्नेह किया बस काया से। क्या कह दूं मैं जा उनसे, सच बोलूं या झूठ कहुँ। क्यूँ मानव हूँ कहता मन को, बिन परिवार ही ठूंठ रहूँ। तुम बोलो कब तक मन मे हमारे बैठा ऐसा विकार रहेगा। सरेआम या बीच सड़क क्या होता इनका चीत्कार रहेगा। बहना ने राखी बांधी थी, बेटी कंधे पे झूली है। फिर उनकी किस्मत में क्यूँ, अत्याचार और सूली है। किस हक मां को मां कह दूं, नज़रें भी कैसे चार करूँ। जिस गोद मे बचपन खेला था, उसपे भी मैं वार करूँ। ब्याहा, जिसको दुल्हन माना, उसका मान भी बेच रहा। कृष्ण बना बैठा हूँ लेकिन, वस्त्र उसका ही खेंच रहा। कब तक मान का गहना बोलो होता यूं ही शिकार रहेगा। सरेआम या बीच सड़क क्या होता इनका चीत्कार रहेगा। तुम अपने हक को लड़ते हो, उनका भी तो कुछ हक होगा। कल की बातें छूटीं पीछे, अब इनका समर सम्यक होगा। जिस गोद मे खेला, पला बढ़ा, कुछ तो कर्ज़ उस गोद का होगा। कब तक ममता बरसाएगी, कुछ तो असर अब क्रोध का होगा। उसकी ख़ातिर भी मूक रहोगे, जिसने लहु से तुमको सींचा है। क्या हाथ सुरक्षित रह पाएगा, जिसने दुपट्टा उसका खींचा है। आज रहे तुम मौन खड़े, क्या कल को ये परिवार रहेगा। सरेआम या बीच सड़क क्या होता इनका चीत्कार रहेगा। ©रजनीश "स्वछंद" क्या, यूँ ही होता श्रृंगार रहेगा।।। कर्मों से नहीं, बस शब्दों से ही होता इनका श्रृंगार रहेगा। सरेआम या बीच सड़क क्या होता इनका चीत्कार रहेगा। क्या पूछूं मैं जाकर उनसे, शब्दों में जिनको बांध रखा। आज़ादी का भ्रम देकर,
क्या, यूँ ही होता श्रृंगार रहेगा।।। कर्मों से नहीं, बस शब्दों से ही होता इनका श्रृंगार रहेगा। सरेआम या बीच सड़क क्या होता इनका चीत्कार रहेगा। क्या पूछूं मैं जाकर उनसे, शब्दों में जिनको बांध रखा। आज़ादी का भ्रम देकर,
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 7 - सब में भगवान 'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!' दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 4 - मनुष्य क्या कर सकता है? 'पशुपतिनाथ। मुझ अज्ञानीको मागे दिखाओ।' उस ठिगने किन्तु सुपुष्ट शरीर वृद्ध के नेत्र भर आये। उसके भव्य भाल पर कदाचित ही किसीने कभी चिन्ता की रेखा देखी हो। विपत्ति में भी हिमालय के समान अडिग यह गौरवर्ण छोटे नेत्र एवं कुछ चपटी नाक वाला नेपाली वीर आज कातर हो रहा है -'भगवान । मुझे कुछ नहीं सूझता कि क्या करूं। मनुष्य को तुम क्यों धर्मसंकट में डालते हो? तुम्हें पुकारना छोड़कर मनुष्य ऐसे समय में और क्या करे? तुम बताओ, म
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 16 – भाग्य-भोग 'भगवन! इस जीव का भाग्य-विधान?' कभी-कभी जीवों के कर्मसंस्कार ऐसे जटिल होते हैं कि उनके भाग्य का निर्णय करना चित्रगुप्त के लिये भी कठिन हो जाता है। अब यही एक जीव मर्त्यलोक से आया है। इतने उलझन भरे इसके कर्म है - नरक में, स्वर्ग में अथवा किसी योनि-विशेष में कहाँ इसे भेजा जाय, समझ में नहीं आता। देहत्याग के समय की इसकी अन्तिम वासना भी (जो कि आगामी प्रारब्ध की मूल निर्णायिका होती है) कोई सहायता नहीं देती। वह वासना भी केवल देह की स्
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 7 - सब में भगवान 'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!' दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम जन शुन्य था। भवनों के द्वार खुले पड़े थे।
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 4 - मनुष्य क्या कर सकता है? 'पशुपतिनाथ। मुझ अज्ञानीको मागे दिखाओ।' उस ठिगने किन्तु सुपुष्ट शरीर वृद्ध के नेत्र भर आये। उसके भव्य भाल पर कदाचित ही किसीने कभी चिन्ता की रेखा देखी हो। विपत्ति में भी हिमालय के समान अडिग यह गौरवर्ण छोटे नेत्र एवं कुछ चपटी नाक वाला नेपाली वीर आज कातर हो रहा है -'भगवान । मुझे कुछ नहीं सूझता कि क्या करूं। मनुष्य को तुम क्यों धर्मसंकट में डालते हो? तुम्हें पुकारना छोड़कर मनुष्य ऐसे समय में और क्या करे? तुम बताओ, मुझे क्या करना चाहिये हैं?' आँसू की बुंदे
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