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Shalini Nigam
"हर पिता" की किस्मत में ~गणेश सी संतान हो ना हो मगर हर संतान की किस्मत में ~महादेव से पिता जरूर होते हैं!! ©Shalini Nigam #Nojoto #Love #Life #yqdidi #yqbaba #सन्तान #Shayari
poonam atrey
उम्र भर जिनके लिए मरते खपते रहे , आज वही बच्चे अनजान हो गए, रद्दी क़ागज़ सी हो गई माँ बाप की क़ीमत, बच्चे ओहदेदारों में पहचान हो गए, तिनका तिनका जोड़ा था , काया को जीभर तोड़ा था,एक आशियाने के लिए, वक़्त का सितम देखो,उस नीड़ की पहचान थे जो, वही चन्द पल के मेहमान हो गए, जिस क़ागज़ पर पढा था ज़िन्दगी का ककहरा, हर ख़्वाब जिनकी आँखों मे था ठहरा, गूंजा करती थी अमृत वाणी जिनके लफ्जों में, वही उस मन्दिर में बेजुबान हो गए, फेंक दिया एक रोज ज़िन्दगी से निकालकर, रखा था जिन्होंने कभी दिल मे सँभालकर, फेंक दिया माँ बाप को रद्दी समझकर, चन्द सिक्के ही उनके अब भगवान हो गए।। -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #रद्दी_काग़ज़ #सन्तान #माँ_बाप #पूनमकीकलमसे #नोजोटोशायरी Rama Maheshwari Deep isq Shayri #lover Noor Hindustani वंदना .... AD Grk वंदना .... AD Grk Hardik Mahajan Neel Anshu writer Aditya kumar prasad Anil Ray मनस्विनी Mahi Maaahi.. Sonu sa Mili Saha Payal Das Madhusudan Shrivastava Ambika Mallik Banarasi.. Utkrisht Kalakaari परिंदा Urvashi Kapoor Rameshkumar Mehra Mehra vineetapanchal Niaz (Harf) Ravikant Dushe Kamlesh Kandpal Praveen Jain "पल्लव" Praveen Jain "पल्लव" Bhardwaj Only B
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read morekumaarkikalamse
आज की संतानें देखता हूँ क्या आज ज़माना आ गया है , माँ - बाप का मज़ाक बनाना आ गया है! जो पोछते है बच्चों के आँसू हमेशा हँसकर, उन बच्चों को माँ-बाप को रुलाना आ गया है! माँ की सलाह बनने लगी है घुटन जाने क्यों , हर बात पर ममता को आजमाना आ गया है! सिसकती है अकेले में, पर कुछ कह नहीं पाती, अरमानों को रोंद कर सपनें सजाना आ गया है ! बड़ी हो गयी हैं संतानें जिन्हें माँगा मुरादों से, बिन रिश्तेदारों के अकेले घर चलाना आ गया है। क्यों पढ़े ➡️ आज के दौर में संताने कितनी बदली है उसी का एक चित्रण #cinemagraph #paidstory #kumaarsthought #माँबाप #सन्तान
क्यों पढ़े ➡️ आज के दौर में संताने कितनी बदली है उसी का एक चित्रण #cinemagraph #paidstory #Kumaarsthought #माँबाप #सन्तान
read moreवेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। भूरि॒ नाम॒ वन्द॑मानो दधाति पि॒ता व॑सो॒ यदि॒ तज्जो॒षया॑से। कु॒विद्दे॒वस्य॒ सह॑सा चका॒नः सु॒म्नम॒ग्निर्व॑नते वावृधा॒नः ॥ पद पाठ भूरि॑। नाम॑। वन्द॑मानः। द॒धा॒ति॒। पि॒ता। व॒सो॒ इति॑। यदि॑। तत्। जो॒षया॑से। कु॒वित्। दे॒वस्य॑। सह॑सा। च॒का॒नः। सु॒म्नम्। अ॒ग्निः। व॒न॒ते॒। व॒वृ॒धा॒नः ॥ हे सन्तानो ! जो आप लोगों के माता-पिता दूसरे विद्यारूप जन्म नामक द्विज ऐसा नाम विधान करते हैं, उनका सेवन निरन्तर तुम लोग करो ॥ o child ! Those of you, your parents, who do such a name for the second birth as a Dwij, do continue to use them. ( ऋग्वेद ५.३.१० ) #ऋग्वेद #वेद #सन्तान #द्विज #सेवा
आयुष पंचोली
माता-पिता अपना सबकुछ बलिदान कर के भी अपनी सन्तान का लालन पोषण करते हैं। उनका जीवन संवारने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। मगर कभी कुछ ऐसा हो जाता हैं की उनके कुछ निर्णय बहुत ज्यादा गलत हो जाते हैं। जिसे वे भी समझते हैं। मगर सन्तान का अपने दुखो का हर बार उनके आगे रो रोकर अपने दुखड़े सुनाना उन्हे जितनी तकलिफ पहुचाता उतना कुछ और नही। हर व्यक्ति के शरीर और दिमाग की एक उम्र होती हैं, सहने और बर्दास्त करने की। ठीक ऐसा ही माता-पिता का हैं। वे भी एक उम्र तक ही सह सकते हैं। और जब उनका शरीर और दिमाग ही उनका साथ ना दे उस उम्र मे भी जो सन्तान अपने दुखड़े उनके सामने रोती रहती हैं, वही उनकी आकस्मिक मृत्यू का कारण बनती हैं। हृदय घात और मानसिक प्रताड़ना के होने वाली सभी मृत्यू का लगभग एक कारण यही होता हैं। जिसे कोई स्वीकार करना नही चाहता। सन्तान चाहे लड़का हो या लडकी अगर अपने माता-पिता की एक उम्र के बाद भी उनका रोना और मांगना उनसे जारी हैं, तो यकीन मानिये वह सन्तान सिर्फ उनकी मृत्यू की राह देख रही हैं। बात कड़वी हैं मगर सत्य हैं। और ऐसी सन्तानो के होने से अच्छा हैं, सन्तान का ना होना।🙏🙏🙏 ©आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #mereprashnmerisoch माता-पिता अपना सबकुछ बलिदान कर के भी अपनी सन्तान का लालन पोषण करते हैं। उनका जीवन संवारने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। मगर कभी कुछ ऐसा हो जाता हैं की उनके कुछ निर्णय बहुत ज्यादा गलत हो जाते हैं। जिसे वे भी समझते हैं। मगर सन्तान का अपने दुखो का हर बार उनके आगे रो रोकर अपने दुखड़े सुनाना उन्हे जितनी तकलिफ पहुचाता उतना कुछ और नही। हर व्यक्ति के शरीर और दिमाग की एक उम्र होती हैं, सहने और बर्दास्त करने की। ठीक ऐसा ही माता-पिता का हैं। वे भी एक उम्र तक ही सह सकते हैं। और जब उनका शरीर और दिमाग ही उनका
माता-पिता अपना सबकुछ बलिदान कर के भी अपनी सन्तान का लालन पोषण करते हैं। उनका जीवन संवारने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। मगर कभी कुछ ऐसा हो जाता हैं की उनके कुछ निर्णय बहुत ज्यादा गलत हो जाते हैं। जिसे वे भी समझते हैं। मगर सन्तान का अपने दुखो का हर बार उनके आगे रो रोकर अपने दुखड़े सुनाना उन्हे जितनी तकलिफ पहुचाता उतना कुछ और नही। हर व्यक्ति के शरीर और दिमाग की एक उम्र होती हैं, सहने और बर्दास्त करने की। ठीक ऐसा ही माता-पिता का हैं। वे भी एक उम्र तक ही सह सकते हैं। और जब उनका शरीर और दिमाग ही उनका
read moreआयुष पंचोली
रिश्ते और समबन्ध, कलयुग की माया के बन्धन...!! रिश्ते क्या हैं,सम्बंध क्या हैं...? सच कहूँ तो, रिश्ते और सम्बंध इस जीवन का सबसे बड़ा झुठ हैं। यह सिर्फ मात्र एक दिखावा हैं और कुछ नही। जो आपको हर पल अपने कर्म से पहले उनके बारे मे सोचने पर विचलित करेगा। अगर कलयुग की बात करे तो कलयुग माया से पूरी तरह प्रभावित हैं, माया से ही पूरी तरह ग्रसित हैं। यह रिश्ते और सम्बंध और कुछ नही उसी माया का एक रूप हैं। जो सदा हमे जकड़े रखते हैं। और अपने लक्ष्य से विचलित करते हैं। अगर कोई व्यक्ति जीवन मे कभी कुंडलिनी जागरण का सोच रहा हैं या करना चाहता हैं, तो एक बात याद रखना, जितने ज्यादा रिश्तों मे उलझोगे, उतना ज्यादा इस शक्ती से दूर होते चले जाओगे। क्योकी अगर मूलाधार चक्र जाग्रत होता हैं, तो वह सबसे पहले इन रिश्तों से ही आपको दूर करता हैं, जो माया का एक रूप एक प्रलोभन हैं। रिश्ते और सम्बंध सिर्फ स्वार्थ पुर्ती का एक जरिया हैं। क्योकी अगर इस मायालोक मे जन्म लिया हैं तो माया, के बन्धन मे आपको कोई तो जकड़ ही लेता हैं, जिसे सबसे ज्यादा अन्जाम यही रिश्ते यही सम्बंध देते हैं। माँ, पिता, भाई, बहन, पत्नी, बेटा, बेटी, दोस्त यह रिश्ते यह सम्बंध और कुछ नही बस मोह का वही मार्ग हैं, जो आपकी मुक्ति के मार्ग को अवरोधित करता हैं। एक पुरुष और एक स्त्री के आपसी समबन्ध से एक सन्तान का जन्म होता हैं, अब दो लोगो के आपसी समबन्ध से जैसे ही तीसरा उतपन्न हुआ, रिश्ते और सम्बंध भी बढ गये। और यही प्रक्रिया निरन्तर चल रही हैं। किसी को अपने कुल की चिंता हैं, की उसके बाद उसके कुल को आगे कौन बडायेगा तो वह समबन्ध बनाता हैं। किसी को चिंता हैं, की बिना सन्तान के उसकी मुक्ति कैसे होगी तो वह सम्बन्ध बनाता हैं। कोई इस फ़िक्र मे हैं की अगर उसके साथ कोई ना होगा तो, वो कैसे जियेगा, तो वो समबन्ध बनाता हैं। इसी तरह यह फ़िक्र यह चिंता ही मनुष्य को माया से सदा जोड़े रखती हैं। और उस अस्तित्व का ज्ञान होने ही नही देती जो उसकी पूर्णता का माध्यम हैं। रिश्ते और समबन्ध बनाना गलत नही हैं, मगर सदा के लिये उनमे ही उलझ कर रह जाना तो गलत हैं। यह इस जीवन का एक अकाट्य सत्य हैं , की हर रिश्ता स्वार्थ से ही जुड़ा हैं, हर रिश्ता आपसे कुछ ना कुछ उम्मीद ही रखता हैं। सिर्फ ईश्वर ही हैं,जिसे आपसे कभी कोई उम्मीद नही रहती । क्योकी वह जानता हैं, यह पहले से ही इतने जन्जालो मे उलझ हैं, इससे क्या उम्मीद रखे, जो मेरे ही सहारे जी रहा हैं। और हम सबसे ज्यादा धोखा भी उसी ईश्वर को देते हैं। सिर्फ इन सांसारिक माया जाल से जुड़े सम्बंधो को सबकुछ मानकर। पर सही कहूँ तो धोखा शायद हम अपने आपको ही दे रहे हैं। हम जितने रिश्तों मे बंधते जायेंगें, उनसे हमारी और हमसे उनकी उम्मीदे भी उतनी ही बड़ती जायेंगी। और यही उम्मीदे उस मार्ग मे बाधा बनेगी, जो आपका लक्ष्य हैं।
रिश्ते क्या हैं,सम्बंध क्या हैं...? सच कहूँ तो, रिश्ते और सम्बंध इस जीवन का सबसे बड़ा झुठ हैं। यह सिर्फ मात्र एक दिखावा हैं और कुछ नही। जो आपको हर पल अपने कर्म से पहले उनके बारे मे सोचने पर विचलित करेगा। अगर कलयुग की बात करे तो कलयुग माया से पूरी तरह प्रभावित हैं, माया से ही पूरी तरह ग्रसित हैं। यह रिश्ते और सम्बंध और कुछ नही उसी माया का एक रूप हैं। जो सदा हमे जकड़े रखते हैं। और अपने लक्ष्य से विचलित करते हैं। अगर कोई व्यक्ति जीवन मे कभी कुंडलिनी जागरण का सोच रहा हैं या करना चाहता हैं, तो एक बात याद रखना, जितने ज्यादा रिश्तों मे उलझोगे, उतना ज्यादा इस शक्ती से दूर होते चले जाओगे। क्योकी अगर मूलाधार चक्र जाग्रत होता हैं, तो वह सबसे पहले इन रिश्तों से ही आपको दूर करता हैं, जो माया का एक रूप एक प्रलोभन हैं। रिश्ते और सम्बंध सिर्फ स्वार्थ पुर्ती का एक जरिया हैं। क्योकी अगर इस मायालोक मे जन्म लिया हैं तो माया, के बन्धन मे आपको कोई तो जकड़ ही लेता हैं, जिसे सबसे ज्यादा अन्जाम यही रिश्ते यही सम्बंध देते हैं। माँ, पिता, भाई, बहन, पत्नी, बेटा, बेटी, दोस्त यह रिश्ते यह सम्बंध और कुछ नही बस मोह का वही मार्ग हैं, जो आपकी मुक्ति के मार्ग को अवरोधित करता हैं। एक पुरुष और एक स्त्री के आपसी समबन्ध से एक सन्तान का जन्म होता हैं, अब दो लोगो के आपसी समबन्ध से जैसे ही तीसरा उतपन्न हुआ, रिश्ते और सम्बंध भी बढ गये। और यही प्रक्रिया निरन्तर चल रही हैं। किसी को अपने कुल की चिंता हैं, की उसके बाद उसके कुल को आगे कौन बडायेगा तो वह समबन्ध बनाता हैं। किसी को चिंता हैं, की बिना सन्तान के उसकी मुक्ति कैसे होगी तो वह सम्बन्ध बनाता हैं। कोई इस फ़िक्र मे हैं की अगर उसके साथ कोई ना होगा तो, वो कैसे जियेगा, तो वो समबन्ध बनाता हैं। इसी तरह यह फ़िक्र यह चिंता ही मनुष्य को माया से सदा जोड़े रखती हैं। और उस अस्तित्व का ज्ञान होने ही नही देती जो उसकी पूर्णता का माध्यम हैं। रिश्ते और समबन्ध बनाना गलत नही हैं, मगर सदा के लिये उनमे ही उलझ कर रह जाना तो गलत हैं। यह इस जीवन का एक अकाट्य सत्य हैं , की हर रिश्ता स्वार्थ से ही जुड़ा हैं, हर रिश्ता आपसे कुछ ना कुछ उम्मीद ही रखता हैं। सिर्फ ईश्वर ही हैं,जिसे आपसे कभी कोई उम्मीद नही रहती । क्योकी वह जानता हैं, यह पहले से ही इतने जन्जालो मे उलझ हैं, इससे क्या उम्मीद रखे, जो मेरे ही सहारे जी रहा हैं। और हम सबसे ज्यादा धोखा भी उसी ईश्वर को देते हैं। सिर्फ इन सांसारिक माया जाल से जुड़े सम्बंधो को सबकुछ मानकर। पर सही कहूँ तो धोखा शायद हम अपने आपको ही दे रहे हैं। हम जितने रिश्तों मे बंधते जायेंगें, उनसे हमारी और हमसे उनकी उम्मीदे भी उतनी ही बड़ती जायेंगी। और यही उम्मीदे उस मार्ग मे बाधा बनेगी, जो आपका लक्ष्य हैं।
read moreआयुष पंचोली
जैसा आचरण, जैसा व्यवहार, जैसे बोल और जैसी सोच माता-पिता की होती हैं, सन्तान उसी मे ढल जाती हैं। किसी को अपनी परवरिश मे खोट नजर नही आती, मगर यही सोच बड़े बड़े मुजरिम भी बनाती हैं। आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi माता-पिता को मिलने वाला मान-सम्मान अपने बच्चों के गुणो से ही आंका जाता हैं। बच्चे को मिली सफलता का जितना श्रेय माता-पिता को दिया जाता हैं। उतना ही उसके कुकर्मो व आचरण और व्यवहार का श्रेय भी माता-पिता को ही जाता हैं। आपको दुनिया आपकी सन्तान के आचरण और व्यवहार का मुख्य कारण ही समझती हैं। इसलिये बच्चों मे बालपन से ही ऐसे संस्कार दे की वे, अपना ही नही आपका मान-सम्मान भी कभी डिगने ना दे। क्या सही हैं, क्या गलत उन्हे इसका बोध अवश्य करायें । और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास भी करायें । प्यार इन्सान को स
माता-पिता को मिलने वाला मान-सम्मान अपने बच्चों के गुणो से ही आंका जाता हैं। बच्चे को मिली सफलता का जितना श्रेय माता-पिता को दिया जाता हैं। उतना ही उसके कुकर्मो व आचरण और व्यवहार का श्रेय भी माता-पिता को ही जाता हैं। आपको दुनिया आपकी सन्तान के आचरण और व्यवहार का मुख्य कारण ही समझती हैं। इसलिये बच्चों मे बालपन से ही ऐसे संस्कार दे की वे, अपना ही नही आपका मान-सम्मान भी कभी डिगने ना दे। क्या सही हैं, क्या गलत उन्हे इसका बोध अवश्य करायें । और उन्हे उनकी गलतियों का एहसास भी करायें । प्यार इन्सान को स
read moreKamal bhansali
माता देवी होती पिता देवता होते जो बिन मांगे सन्तान को सब कुछ देते सन्तान वही सर्वश्रेष्ठ होती जो इस तथ्य को समझती और जिंदगी भर उनकी सेवा का प्रण लेती यकीन मानों मेरा दुनिया में इससे बड़ी कोई सामूहिक खुशी नहीं होती ✍️कमल भंसाली #NojotoQuote सामूहिक खुशी
सामूहिक खुशी
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