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Best गृहस्थ Shayari, Status, Quotes, Stories

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Sangeeta Jha

#गृहस्थ जीवन का सफल होना बहुत जरूरी है.. ❤❤😊😊

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Swati Tyagi

#शादी एक बहुत ही #महत्वपूर्ण #फैसला हैं लेकिन इसके अलावा भी कुछ लोगो के लिए बहुत सारी समान mehatav रखने वाली चीजे होती हैं और कुछ के लिए उस से भी जरूरी तो हर किसी के अपने #लक्ष्य हैं। प्रत्येक इंसान को अपनी जरूरतों को समझते हुए ही फैसला लेना चाहिए उसे देखना चाहिए वो इसके लिए तैयार भी हैं या नहीं क्या वो ये जिम्मेदारी उठा सकता हैं क्युकी #गृहस्थ जीवन बहुत बड़ी साधनाओ मे से एक मानी गय हैं लेकिन तब जब आप सक्षम हो उस जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए जब आप एक दूसरे के साथ खुश हो क्युकी इस एक इं

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
4 – कर्म

'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।'

बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

आयुष पंचोली

ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!! ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् "ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण" ऐसा कहां गया हैं, मतलब "जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं। पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से

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ब्राह्मण क्या हैं? ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!!

ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् "ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण" ऐसा कहां गया हैं, मतलब "जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं। 

पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से

Bhaskar Anand

दीवाली,माँ और मैं दीवाली हमेशा से ही स्याह और काली रही है, इस बार भी कुछ अलग नहीं है। अमावस्या सैदव की तरह ऊर्जावान है और तटस्थ भी। मगर सदैव प्रकाश और उत्साह उसके स्याह को मलिन किये रहता था।  ये दीवाली हमारे लिए कुछ ज्यादा ही घनघोर और रंगहीन सा लग रहा है। वैसे ही जैसे स्याम रंग का प्रकृति है, सारे रंग को अवशोषित करने या अपने में समाहित करने की। ऐसा प्रतीत हो रहा है की ये वास्तविक में हमारे जिंदगी के सारे रंगो को लील लिया हो जैसे। प्रकृति का ये बदरंग दीवाली का शायद कोई विकल्प नहीं है, इसकी कोई क्

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दीवाली,माँ और मैं
दीवाली हमेशा से ही स्याह और काली रही है, इस बार भी कुछ अलग नहीं है। अमावस्या सैदव की तरह ऊर्जावान है और तटस्थ भी। मगर सदैव प्रकाश और उत्साह उसके स्याह को मलिन किये रहता था। 
ये दीवाली हमारे लिए कुछ ज्यादा ही घनघोर और रंगहीन सा लग रहा है। वैसे ही जैसे स्याम रंग का प्रकृति है, सारे रंग को अवशोषित करने या अपने में समाहित करने की। ऐसा प्रतीत हो रहा है की ये वास्तविक में हमारे जिंदगी के सारे रंगो को लील लिया हो जैसे। प्रकृति का ये बदरंग दीवाली का शायद कोई विकल्प नहीं है, इसकी कोई क्

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
4 – कर्म

'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।'

बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

Bhaskar Anand

दीवाली हमेशा से ही स्याह और काली रही है, इस बार भी कुछ अलग नहीं है। अमावस्या सैदव की तरह ऊर्जावान है और तटस्थ भी। मगर सदैव प्रकाश और उत्साह उसके स्याह को मलिन किये रहता था। ये दीवाली हमारे लिए कुछ ज्यादा ही घनघोर और रंगहीन सा लग रहा है। वैसे ही जैसे स्याम रंग का प्रकृति है, सारे रंग को अवशोषित करने या अपने में समाहित करने की। ऐसा प्रतीत हो रहा है की ये वास्तविक में हमारे जिंदगी के सारे रंगो को लील लिया हो जैसे। प्रकृति का ये बदरंग दीवाली का शायद कोई विकल्प नहीं है, इसकी कोई क्षतिपूर्ति नहीं है

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दीवाली हमेशा से ही स्याह और काली रही है, इस बार भी कुछ अलग नहीं है। अमावस्या सैदव की तरह ऊर्जावान है और तटस्थ भी। मगर सदैव प्रकाश और उत्साह उसके स्याह को मलिन किये रहता था। 
ये दीवाली हमारे लिए कुछ ज्यादा ही घनघोर और रंगहीन सा लग रहा है। वैसे ही जैसे स्याम रंग का प्रकृति है, सारे रंग को अवशोषित करने या अपने में समाहित करने की। ऐसा प्रतीत हो रहा है की ये वास्तविक में हमारे जिंदगी के सारे रंगो को लील लिया हो जैसे। प्रकृति का ये बदरंग दीवाली का शायद कोई विकल्प नहीं है, इसकी कोई क्षतिपूर्ति नहीं है


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