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Pravin Kumar
Safar एक नौजवान अपने बूढ़े मां-बाप के साथ किसी महंगे होटल में खाना खाने गया- मां बाप तो नहीं जानते थे, लेकिन बेटे की ख्वाहिश थी कि वो उन्हे किसी महंगे होटल में ज़रूर खाना खिलाएगा, इसलिए उसने अपनी पहली तन्ख्वाह मिलने की खुशी में मां बाप जैसी अज़ीम हस्तियों के साथ शहर के महंगे होटल में लंच करने का प्रोग्राम बनाया- बाप को रेशे (जिससे बदन कांपता रहता है) की बीमारी थी,उसका जिस्म हर लम्हा कंपकंपाहट में रहता था, और ज़ईफा मां को दोनों आंखों से कम दिखाई देता था- ये शख्स अपनी खस्ताहाली और बूढ़े मां-बाप के हमराह जब होटल में दाखिल हुआ तो वहां मौजूद अमीर लोगों ने सर से पैर तक उन तीनों को यूं अजीब व गरीब नज़रों से देखा जैसे वो गलती से वहां आ गए हों- खाना खाने के लिए बेटा अपने मां बाप के दरमियान बैठ गया- वो एक निवाला अपनी ज़ईफा मां के मुंह में डालता और दूसरा निवाला बूढ़े बाप के मुंह में- खाने के दौरान कभी कभी रेशे की बीमारी के बाइस बाप का चेहरा हिल जाता तो रोटी और सालन के ज़र्रे बाप के चेहरे और कपड़ों पर गिर जाते- यही हालत मां के साथ भी थी,वो जैसे ही मां के चेहरे के पास निवाला ले जाता तो नज़र की कमी के बाइस वो अनजाने में इधर उधर देखती तो उसके भी मुंह और कपड़ों पर खाने के दाग पड़ जाते थे- इर्द गिर्द बैठे लोग जो पहले ही उन्हे हक़ीर निगाहों से देख रहे थे,वो और भी मुंह चिढ़ाने लगे कि "खाना खाने की तमीज़ नहीं है और इतने महंगे होटल में आ जाते हैं-!" बेटा अपने मां बाप की बीमारी और मजबूरी पर आंखों में आंसू छुपाए, चेहरे पर मुस्कराहट सजाए- इर्द गिर्द के माहौल को नज़र अंदाज़ करते हुए,एक इबादत समझते हुए उन्हे खाना खिलाता रहा- खाने के बाद वो मां बाप को बड़ी इज़्ज़त व एहतराम से वॉश बेसिन के पास ले गया, वहां अपने हाथों से उनके चेहरे साफ किए,कपड़ों पर पड़े दाग धोए और जब वो उन्हें सहारा देते हुए बाहर की जानिब जाने लगा तो पीछे से होटल के मैनेजर ने आवाज़ दी और कहा: "बेटा ! तुम हम सबके लिए एक क़ीमती चीज़ यहां छोड़े जा रहे हो-!" उस नौजवान ने हैरानगी से पलट कर पूछा : " क्या चीज़-?" मैनेजर अपनी ऐनक उतार कर आंसू पोंछते हुए बोला-! *#नौजवान_बच्चों_के_लिए_सबक़* *#और_बूढ़े_मां_बाप_के_लिए_उम्मीद_!*
Sanjeev Singh Sagar
ख़त पढ़े लिखे होने के बाद भी कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी।घर वाले और रिश्ते वाले सभी ताने मारने लगें हैं।कुछ दिन तो बर्दाश्त किया लेकिन अब नहीं हो पा रहा था।बहुत सारी परीक्षाएं दी नौकरी के लिए, पर नहीं हो पाया,क्योंकि सामान्य जाति से था।अब सोच लिया कि कुछ न कुछ करना है, पर गाँव में रहकर ये संभव नहीं था।अब तो विनीता भी जवाब दे दी कि उसके परिवार वाले किसी बेरोजगार नौजवान से अपनी बेटी से शादी नहीं करेगा।मैंने सोचा लिया और विनीता को संदेश भेज दिया कि अब वो मुझे भूलकर अपना घर बसा ले क्योंकि उम्र भी ज्यादा होने लगी थी और रात में ही निकल गया। पूरे दो1 दिन बाद दिल्ली आ गया।एक दोस्त रहता था जो किसी कंपनी में जॉब करता है।मुझे भी एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में बारह हजार रुपये पर लगवा दिया।घर से एक माँ का फ़ोन आता था और किसी का नहीं।मेरी जान पहचान अब बहुत लोगों से हो गई थी और मैं अब शराब, सिगरेट भी पीने लगा था इसीलिए मेरे खर्चे बढ़ गए थे।जो भी सैलरी मिलती खर्च हो जाती थी।कभी-कभी माँ को और घर की बातों को सोचकर परेशान हो जाता था कि मुझे उनलोगों की भी फ़िकर करनी चाहिए।अब मैं ज्यादा पैसा कमाना चाहता था और इसके लिए कुछ भी करने को तैयार था।एक दिन मेरे कंपनी का मालिक एक बड़ी रक़म लेकर कहीं जाने वाला था और इस बात की ख़बर मैनेजर को था।वह कुछ गुंडे से मिलकर इस रूपये को हड़पना चाहता था।उसने इस काम मेंकुछ लोकल गुंडे को और मुझे भी शामिल कर लिया।मेरा दिल ये करने से डर रहा था पर हालात हौसला दे रहा था।मैनेजर ने बता दिया था कि घर से जब निकलेगा तो उसे फ़ोन कर देगा, फिर सुनसान राहों पर सब मिलकर लूट लेना और मुझे थोड़ा बहुत चोट पहुंचाना, क्योंकि मैं ये करने से तुम सबको रोकूँगा।आज मैं काम से जल्दी निकल गया, क्योंकि शाम में ही इस गलत काम को अंजाम देना था।सात बजते ही मैनेजर का फ़ोन आ गया।मैंने अपना एक पुराना थैला निकाला और उसके अंदर साफ़ करने के लिए हाथ डाला तो एक पुराना ख़त मिला-मेरे प्यारे पोते, ज़िन्दगी में मेहनत, ईमानदारी और विश्वास के बल पर ही आगे बढ़ने की कोशिश करना।किसी भी ग़लत काम को करने से पहले, उसके अंजाम के बारे में जरूर सोचना।ग़लत राहों पर चलकर जो मंज़िल मिलती है, वह जल्दी गिर जाती है।ग़लत तरीके से जो धन आते हैं,वह धन जल्दी खत्म हो जाता है।ग़लत तरीके से जो रिश्ते बनाए जाते हैं, वो हमेशा दुःख देता है।ये ख़त मैंने अपने बच्चों के लिए लिखा है, अगर तुम इसे पढ़कर अपने जिंदगी को सही तरीके से जीना सीख लिये तो इसे सम्हाल कर रख लेना अपने बच्चों के लिए।तुम्हारा दादा...... इस खत ने मेरी आँखें खोल दी और मैं इस गलत काम को करने नहीं गया और सारे गलत काम और आदतें छोड़ने को सोच लिया और मेहनत की राहों पर ही चलकर ज़िन्दगी को सुन्दर बनाने को ठान लिया।। 🖊️सागR मेरे दादा का खत Shilpa Kumari Jha Ranbir Ranjan Rekha Rani Kaushal Kumar Pooja Asija
मेरे दादा का खत Shilpa Kumari Jha Ranbir Ranjan Rekha Rani Kaushal Kumar Pooja Asija
read morePravesh Khare Akash
फादर्स डे (लघुकथा) 💐💐💐💐पी.एस.खरे "आकाश" आज सुबह से ही शर्मा जी तैयार होकर बैठे हुए थे।बार-बार दरवाजे की तरफ देखते कभी दीवार घड़ी की तरफ बेचैनी से देखते,चश्मा साफ करके चेहरे पर हाथ फेरते..ऐसा करते काफी देर हो गई तो रामजी ने पूछा.."अरे शर्मा जी क्या बात है, आज बड़ी बेचैनी दिख रही है चेहरे पे..किसका इंतजार है?" शर्मा जी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा.."आज बेटा आने वाला है न..वही तो अकेला सहारा है मेरा..आज के दिन जरूर आता है मुझसे मिलने..."। रामजी ने आश्चर्य से कहा..."आज उसका जन्मदिन है क्या या आपका?" "नहीं.. नहीं, जन्मदिन नहीं.. आज फादर्स डे है न तो विश करने हर साल आता है और देखना" ...बात हलक में रह गयी और शर्मा जी तेजी से आगे बढ़े। मेन गेट पर एक बड़ी सी कार रूकी और एक युवा के साथ फलों की टोकरी लिए हुए दो लोग उतरे।शर्मा जी ने युवक का कंधा थपथपाया और आँखें साफ करके कुशल क्षेम पूछी। फलों की टोकरी प्रबंधक को देकर युवक बोला..."मैनेजर साहब, कई सोशल एक्टिविटी में बिजी रहने के कारण आज के दिन यहाँ आ पाना काफी मुश्किल हो जाता है,इसलिए पिताजी को इंटरनेट कनेक्शन के साथ ये लैपटॉप दे जा रहा हूँ जिससे आगे से वीडियो चैट के थ्रू बात करता रहूँगा और इस वृद्धाश्रम के लिए दान सामग्री मेरे सहयोगी दे जाया करेंगे।" मैनेजर के कमरे से बाहर निकल कर वह शर्मा जी के पास गया,गले मिला और हैप्पी फादर्स डे पापा बोलकर गाड़ी से धूल उड़ाता चला गया। फादर्स डे
फादर्स डे
read moreशायरी वाला
बैंक मैनेजर - मैडम, आपका अकाउंट हैक हो गया है.. मैडम - whatsapp अकाउंट? बैंक मैनेजर- नहीं मैडम, बैंक अकाउंट! मैडम 🙄Thank God आपने तो मुझे डरा ही दिया था 😏😂🤣 facebook/updatewala #NojotoQuote #nojotojokes, #nojotohindi
Ajay Amitabh Suman
नमक बेईमानी का अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंपोर्ट और एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में बहुत बड़ी पहुंच थी। अरोड़ा साहब इस बात का बराबर ख्याल रखते कि दिवाली या नए वर्ष के समय एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट के सरकारी कर्मचारियों के पास बख्शीश समय पर पहुंच जाए। ये अरोड़ा साहब
नमक बेईमानी का अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंपोर्ट और एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में बहुत बड़ी पहुंच थी। अरोड़ा साहब इस बात का बराबर ख्याल रखते कि दिवाली या नए वर्ष के समय एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट के सरकारी कर्मचारियों के पास बख्शीश समय पर पहुंच जाए। ये अरोड़ा साहब
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