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Preeti Karn
अश्रु अभ्यागत बने याचना अनुरक्त है धैर्य संयम खो रहा अब सलिल हृदय क्यों मौन है।। प्रीति #निशीथ: अर्द्ध रात्रि #अनुताप: पश्चाताप, खेद #सलिल: जल #अभ्यागत: अतिथि #yqdidi #yqhindiquotes
Deepak Singh (dipu...)
#सलिल रातों की गुमनाम अंधेरों में। मैं बैठा था कुछ दूरी पर, एक धुंध सी रोशनी सी परी। उसके सुनहरे चहेरो`पर। देख के उसे यू बस।। अभी जीने की जो आस जगी थी। अचानक, गुम सी वो हो गई, बहती हवा की लहरों पर।। Dipu Sapno ke kisse..💞
Sapno ke kisse..💞
read moreVandna Sood Topa
गहरे समन्दर के अंदर खामोशियाँ उठती हैं गिरती हैं उफान भरी गूंगी सी लहरें शब्दों को तलाशे फिरती हैं धरा की पुकार पर जब जब सलिल मिलन को तड़पता है चट्टानों से टकराकर उसका दर्द सैलाब में बदलता है आहत हो जाते हैं उस पल रेत पर रेत से बने खरौंदे कई कितने सपने बह जाते हैं गहरे समन्दर के अंदर खामोशियाँ उठती हैं गिरती हैं उफान भरी गूंगी सी लहरें शब्दों को तलाशे फिरती हैं धरा की पुकार पर जब जब सलिल मिलन को तड़पता है चट्टानों से टकराकर उसका दर्द सैलाब में बदलता है आहत हो जाते हैं उस पल रेत पर रेत से बने खरौंदे कई कितने सपने बह जाते हैं उन खरौंदो में सोये... अपनों के संग के साथ संजोये वो इक पल ..वो इक सपना.. पानी में भीगता टूटता बह जाता है बस यूँ ही शोर में वापस आने की चाहत में उन खरौंदो में सोये... अपनों के संग के साथ संजोये वो इक पल ..वो इक सपना.. पानी में भीगता टूटता बह जाता है बस यूँ ही शोर में वापस आने की चाहत में #NojotoQuote
आशीष गौड़
अपनी कुंठा को अंकनी से, इस पोथी पर लिखता हूँ। मूकभाव से लिखकर भी में, बाज़ारों में बिकता हूँ!! वर्षा ऋतु भी अब कलयुग में बिना सलिल के आती है। देवनदी भी बस पुस्तक में , अब गंगा कहलाती है! धर्मयुद्ध के दलदल से अब ऊपर ही में दिखता हूँ! अपनी कुंठा को अंकनी से, इस पोथी पर लिखता हूँ
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