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Ansh Rajora
जठर की अग्नि अति पापी प्राणी सौ सौ पाप कमाए अंश महत्तम धन संतोष है सब क्षुधा मिट जाये💗 Ankita Tripathi जी की कोट से प्रेरित💐 #जठर = #पेट #क्षुधा = #भूख #yqdidi #दोहा #yqbaba #जठर #अग्नि #the1 #humanity
somnath gawade
युट्युबने नवनवीन पाककृती दाखवून आता पर्यंत 'नेत्रक्षुधा' तृप्त केली आहे; यापुढे त्यांनी 'जिह्वाक्षुधा' तृप्त करता येईल अशी सोय करावी.😂🤣 #क्षुधा
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही
read moreS Ram Verma (इश्क)
#OpenPoetry हवन की समिधा ! तुम्हारे प्रेम क्षुधा से व्याकुल मेरा हृदय तृप्ति की चाह सिर्फ एक तुम से रखता है ; मेरे मन में जबसे तुम हुई हो शामिल ये दिल जिद्द पर अड़ा है बनने को तुम्हारे हवन कुंड की समिधा है ; जो हर एक आहुति के साथ धधक कर पूर्ण होना चाहता है सुनते ही स्वाहा ; ताकि तुझमे मिलकर प्रेम की समिधा सा वो हो जाए पूर्ण और मेरे मन की व्याकुल क्षुधा को यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ चीर शांति मिले ! ##हवन #की #समिधा
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही
read moreAnil Siwach
।।श्री हरिः।। 53 - श्याम भी असमर्थ आज फिर भद्र रूठ गया है। कन्हाई इसकी सुनता नहीं - इतना विलम्ब हो गया, इसके अरूण कोमल अधर सूखने लगे, उदर नीचा हो गया, यह क्षुधातुर है और भद्र की बात ही नहीं सूनता। ऐसा खेल में लगा है कि इसे अपने श्रान्त होने, क्षुधातुर होने का ध्यान नहीं। भद्र कहता है - 'अब चल, सब भोजन करें।' 'तू भूखा है? तुझे अभी से क्षुधा लगी है?' श्याम उलटे ही पूछता है - 'तू छीका नहीं लाया तो सुबल का छीका खा ले।' यह भी कोई बात हुई। भद्र अपनी क्षुधा के कारण कन्हाई को क्रीड़ा-विरमित होने को क
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