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Best मैली Shayari, Status, Quotes, Stories

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Anup_yg

shayar_dillwala

#धुंदली #तस्वीरों में अब #खुद को #तलाश करता हूं, शायद इस #मैली दुनिया ने मुझे भी #मैला कर दिया है...

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धुंदली तस्वीरों में अब खुद को तलाश करता हूं,
शायद इस मैली दुनिया ने मुझे भी मैला कर दिया है...

©shayar_dillwala #धुंदली #तस्वीरों में अब #खुद को #तलाश करता हूं,
शायद इस #मैली दुनिया ने मुझे भी #मैला कर दिया है...

Amit Pratap Agnihotri

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#तेरे #दामन में #सितारे हैं तो #होंगे ऐ #फलक•••!

#मुझको #अपनी #माँ की #मैली #ओढ़नी #अच्छी #लगी•••

Kalamkaar Prateek

तेरी सोच का क्या कहूं, हो गई बहुत ही मैली
नज़रें रुक जाती जहां भी देखी लड़की अकेली
छोटी सोच के गुलाम बन गए हैं हम
इंसानियत खत्म हो रही बस निकल रहा धुंए में दम
कदमों तले कर्मों को रोंद चला इंसान
इस सदी में जीना भूल बन रहा हेवान
सोच के दायरे केवल हवस और भूख के है
औरत का दर्जा सबसे ऊंचा ये विचार तो किसी मूर्ख के हैं
मां की चूनर ओढ़ कर जो सुकून से सोता था
औरत की कामयाबी पे जिसका गर्व भी खुश होता था
वो चूनर हो गई अब श्रिण़ और मैली
रिश्तों का कोई मोल नहीं, कामयाबी तो बस एक पहेली
नाक उठा कर चलते हो हैवानियत लेकर
खुद को मर्द कहते हो ऐसी इंसानियत देकर
वो दिन दूर नहीं जब मां काली बन तुझ पर बरसेगी
राक्षसों का संहार होगा तेरी रूह सांसों को तरसेगी।
-प्रतीक चोरड़िया ✍️ #Woman #Respect #DirtyMinds #इज्ज़त #औरत #बलात्कार #हैवानियत #मररहीइंसानियत #PerfectCapture #ByPrateek

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 4 - अकाम 'असंकल्पाज्जयेत् कामम्' काम जानामि ते मूलं संकल्पात् सम्भविष्यसि।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
4 - अकाम

'असंकल्पाज्जयेत् कामम्'

काम जानामि ते मूलं संकल्पात् सम्भविष्यसि।

प्रियदर्शन कुमार

काव्य संख्या - 152 -------------------------- नदियों की मौन व्यथा --------------------------- चलो आज सुनाता हूँ नदियों की मौन व्यथा कल-कल छल-छल करती धाराओं से शायद

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 काव्य संख्या - 152
--------------------------
नदियों की मौन व्यथा 
---------------------------
चलो आज सुनाता हूँ
नदियों की मौन व्यथा
कल-कल छल-छल
करती धाराओं से शायद

आशीष गौड़

अपनी कुंठा को अंकनी से, इस पोथी पर लिखता हूँ। मूकभाव से लिखकर भी में, बाज़ारों में बिकता हूँ!! वर्षा ऋतु भी अब कलयुग में बिना सलिल के आती है। देवनदी भी बस पुस्तक में , अब गंगा कहलाती है! धर्मयुद्ध के दलदल से अब ऊपर ही में दिखता हूँ! अपनी कुंठा को अंकनी से, इस पोथी पर लिखता हूँ

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अपनी कुंठा को अंकनी से, इस पोथी पर लिखता हूँ।
मूकभाव से लिखकर भी में, बाज़ारों में बिकता हूँ!!
वर्षा ऋतु भी अब कलयुग में बिना सलिल के आती है।
देवनदी भी बस पुस्तक में , अब गंगा कहलाती है!
धर्मयुद्ध के दलदल से अब ऊपर ही में दिखता हूँ!
अपनी कुंठा को अंकनी से, इस पोथी पर लिखता हूँ

Tanu Bhardwaj

मेरे मित्रमिय !!!!!! लकीरें नहीं मेरे हाथों पे तेरी फिर भी सपने हजारो साजये फिरू तुझमे बसने की मेरी औकात नहीं इसलिए यूं तुझसे नजरे छूपये फिरू । मैं बेताब रहती हूँ तेरे लिए

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 मेरे मित्रमिय !!!!!!

लकीरें नहीं मेरे हाथों पे तेरी
फिर भी  सपने हजारो साजये फिरू 
तुझमे बसने की मेरी  औकात नहीं 
इसलिए यूं  तुझसे नजरे छूपये फिरू ।

मैं बेताब  रहती  हूँ  तेरे  लिए


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