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Alok Ranjan
एक सेठजी ने एक तोता पाल रखा था! सेठजी के यहाँ जो कोई आता... सब उस तोता से खूब बात करता था... सेठजी के यहाँ रोज एक मजदूर आता था... जैसे ही वह आता, तोता, जोर-जोर से बोलने लगता... "मजदूर आ गया... मजदूर आ गया...!" मजदूर खुश होकर, रोज कुछ न कुछ उसे खाने को देता था! एक दिन मजदूर देरी से आया... तोता उसे देखते ही जोर-जोर से बोलने लगा... "मजदूर एक घंटा देरी से आया है... मजदूर एक घंटा देरी से आया है...!" यह सुनते ही मजदूर उसके पास गया और उसे एक अमरूद देते हुए बोला, "चुप हो जा, सेठजी सुन लेंगे!" कल फिर मजदूर देरी से आया, देखते ही तोता जोर-जोर से बोलने लगा, "मजदूर एक घंटा देरी से आया है...!" इस बार सेठजी ने सुन लिया... उन्होंने मजदूर को हिदायत दी कि अगर देरी ही आओगे तो कल से नहीं आना..." मजदूर गुस्से में तोता की ओर देखकर बोला, "तुम्हारे लिए आज ताजा लाल मिर्ची लाया था, लेकिन अब नहीं दूंगा" और काम करने लगा... तोता ने भी कहा, "जा, मुझे भी नहीं चाहिए... कामचोर कहीं का!" तोता रोज मजदूर को देखकर "कामचोर" कहने लगा! एक दिन सेठजी ने कामचोर कहते हुए खुद सुन लिया! तोता की जमकर पिटाई कर दी और हिदायत दी कि अगर, फिर ऐसा बोला तो कल से दाना-पानी बंद कर देंगे! एक सप्ताह बीत गया... मजदूर को देखकर, तोता कुछ न बोलता! एक दिन मजदूर को पेड़ की छाँव में बैठा देख तोता, जोर-जोर से हँसने लगा! तोता को हँसता देख मजदूर बोला, " बिना मतलब के क्यों हँस रहा है, क्या हुआ...!" तोता बोला, "समझ तो गया ही होगा... "और फिर जोर-जोर से हँसने लगा! 🤣🤣🤣🤣🤣 ©Alok Ranjan #तोता #सेठजी
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 9 - भोले भगवान हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।
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|| श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।। 'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा। 'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था।
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