Find the Best निशीथ Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutनिशीथ काल क्या होता है, निशीथ काल का अर्थ, निशीथ का अर्थ, निशीथ का पर्यायवाची, निशीथ काल,
Nisheeth pandey
निशीथ अक्सर डूबते सूरज से पूछता है क्या टूटा दिल भी जोड़ा है फ़रियाद से रब ने #निशीथ ©Nisheeth pandey #tootadil निशीथ अक्सर डूबते सूरज से पूछता है क्या टूटा दिल भी जोड़ा है फ़रियाद से रब ने @निशीथ #BadhtiZindagi #uskebina #intezaar
#tootadil निशीथ अक्सर डूबते सूरज से पूछता है क्या टूटा दिल भी जोड़ा है फ़रियाद से रब ने @निशीथ #BadhtiZindagi #uskebina #intezaar
read moreNisheeth pandey
बीती यादों की पोटली हरे और लाल रंग से ओतप्रोत लम्हें मुट्ठी में दबे रेत हाय रे फिसलती जिंदगी दिन महीना साल गुजर रहा लम्हा लम्हा धरा पर .... नाटक पर नाटक पर नाटक जीने के लिये या उम्र बिताने के लिये कितने नाटक पर नाटक खेल रहे कभी हम दर्शक बनकर तालियां बाँट रहें कभी हम किरदार बन कर तालियां बटोर रहें रंगमंच की धरा पर ...... #निशीथ ©Nisheeth pandey बीती यादों की पोटली हरे और लाल रंग से ओतप्रोत लम्हे मुट्ठी में दबे रेत
बीती यादों की पोटली हरे और लाल रंग से ओतप्रोत लम्हे मुट्ठी में दबे रेत
read moreNisheeth pandey
खामोशी को कब तक कहूँ खामोश रहें आवाज़ की तरंग से क्या कहूँ मधुरता खोये रहें स्वप्न से कब तक कहूँ आखों में सिमटे रहें उम्मीदें जो घर बनाये बैठे हैं खुद कब तक किराएदार बने रहें दिल जो धड़कता है सीने पे हाथ रखकर कैसे छलते रहें वक्त ने तोड़ा है या तराश रहा है रिश्तों की चोट कबतक सहते रहें रिस्ते दर्द को कब तक उम्मीदों की पट्टियों से बुनते रहें .... #निशीथ ©Nisheeth pandey खामोशी को कब तक कहूँ खामोश रहें आवाज़ की तरंग से क्या कहूँ मधुरता खोये रहें स्वप्न से कब तक कहूँ आखों में सिमटे रहें उम्मीदें जो घर बनाये बैठे हैं खुद कब तक किराएदार बने रहें
खामोशी को कब तक कहूँ खामोश रहें आवाज़ की तरंग से क्या कहूँ मधुरता खोये रहें स्वप्न से कब तक कहूँ आखों में सिमटे रहें उम्मीदें जो घर बनाये बैठे हैं खुद कब तक किराएदार बने रहें
read moreNisheeth pandey
प्रिये सावन में तुम बरिस बन कर आना, बहती हँवा में शीतलता समा कर आना ..... क्षण क्षण बदल रही हवा दिशा अपनी , प्रिय भूल नहीं तुम मुझको जाना.... नहीं वह हसीन अब वो राते, जिसमें थी बातें झूलती, झूल- झूल कर होती थी मतवाली रातें ....... याद तुम्हारी जब आती है, पुनः घूम कर आता है ताना बाना..... माना पहले वाला बहारें रहा नहीं अब, बदल गया है संसार हमारा अब ..... रंग रूप का इठलाना इतराना रहा अब नहीं, सुनहरी हवा सा मन दिखता नहीं ....... अब न सावन झूला झूलते , न कोयल कोई गीत सुनाती.... सुनो न , फिर जेहन में घुलने का ढूंढ लो बहाना, प्रिये कहना नहीं , करना नहीं मूसलाधार बारिश का बहाना ....... अब रात क्या दिन भी लगता अंधेरा, तुम नहीं ,हर पहर में लगता व्याकुल मन.... तिनका तिनका मन रसिया जल रहा, प्रिय मेरी ,भूल गई प्रीत की कसमें क्या निभानी ....... समय हर समय बदल रही धूप की छवि में , प्रिये भूला नहीं तुम्हारा मोहक मुस्कुराना ..... हर छन हर रंग बिखेड़ना दिल के कैनवास में, प्रिये अबकी सावन में तुम फिर आ जाना..... #निशीथ ©Nisheeth pandey प्रिये सावन में तुम बरिस बन कर आना, बहती हँवा में शीतलता समा कर आना ..... क्षण क्षण बदल रही हवा दिशा अपनी , प्रिय भूल नहीं तुम मुझको जाना....
प्रिये सावन में तुम बरिस बन कर आना, बहती हँवा में शीतलता समा कर आना ..... क्षण क्षण बदल रही हवा दिशा अपनी , प्रिय भूल नहीं तुम मुझको जाना....
read moreNisheeth pandey
तहरीर में सिमटते हैं कहाँ दिलों के दर्द , बहला रहा हूँ खुद को ज़रा काग़ज़ों के साथ कौन आएगा अब ए दिल तुझ को तसल्ली देने, तेरी उदास तबियत की खबर किस को है …... #निशीथ
read moreNisheeth pandey
शीर्षक - बदहवास मन तुम्हारे मुलायम हाथों से बनी कड़क चाय जब जब तुम्हारे होठों को छू कर मुझतक आती थी सच में तन और मन हर दफा ताजगीं और मिठास की चाशनी में घुल जाता था तुम्हारे मुलायम हाथ जब तपाकर निकालती थी रोटी मानो तुम्हारे हाथों को छूकर हो जाती मुलायम रोटी ! तब होता एहसास, मानो चूल्हा सेकता हो- नर्म भूख, सौंधी लाजवाब रोटियां, फिर तो बस उलटते-पलटते थे पेट में चूहे ही चूहे । उबलते दूध में , तुम्हारा पक पक वाला गुस्सा जैसे खामोशी से जल्दबाजी में ,पी लेने की इच्छा और मुंह जलाना, फिर झट से भरे गिलास में फूंक मारना मानो आँखे दिखाकर गरमाहट को,ठंडा करना फिर थमाना मेरे हाथ में। मन की तपिश को पी जाना,दुप्पट्टा में सहेज लेना, छाती से लगाकर मेरे बालों में कोमल उंगलियों को घुमा कर, यकीनन मुझे उलझा देना हर गम को गमहीन बनाने कोशिश करना और रोज सफलता का प्रार्थना करना उदास पलों में भी ,उम्मीद-के दिये जला जाना। पर अब तुम बिन..... काटें नहीं जाते दिन, बहुत लंबे लगने लगे दिन, आग में जलने लगीं दुपहरी, नहीं लगती रात रात सी मादक मेरे इर्द गिर्द से आती हवा ,जब छूते हैं मेरा बदन चुभा जाती है नश्तर, सुबह की चिडि़यों का राग लगने लगा है ताना चहचहाट में, सुबह की सुनहरी धूप तन मन को लगा है तिलमिलाने बदहवाश मन लगता है ,बाजार के भीड़ में भी, क्योंकि, अब तुम नहीं हो न जाने क्यूँ अब तुम नहीं हो!!! #निशीथ ©Nisheeth pandey #Mulaayam शीर्षक - बदहवास मन तुम्हारे मुलायम हाथों से ,बनी कड़क चाय जब जब तुम्हारे होठों को, छू कर मुझतक आती थी
#Mulaayam शीर्षक - बदहवास मन तुम्हारे मुलायम हाथों से ,बनी कड़क चाय जब जब तुम्हारे होठों को, छू कर मुझतक आती थी
read moreNisheeth pandey
दिल के दर्द का इलाज कोई हकीम क्या जाने ..... हर एक दवा बेअसर सा है तेरे उंगलियों की छुअन के आगे . .. #निशीथ ©Nisheeth pandey #Chhuan दिल के दर्द का इलाज कोई हकीम क्या जाने ..... हर एक दवा बेअसर सा है तेरे उंगलियों की छुअन के आगे . .. #Sunhera #Shajar #baarish #Parchhai #BehtaLamha
Nisheeth pandey
कुछ बच्चे हैं फड़फड़ाती तितलियों के फेर में उल्छे एक बच्चा उसी जगह बैठा है लेकर उदासी के गुच्छे मासूमियत की कितनी गहरी है उदासियां कोई तितली आये दे जाए शायद तसल्लियां लफ़ज है अभी रूठा रूठा सा लेकर कड़वाहट इंतेज़ार है मनाये किसी तितली की फड़फड़ाहट चमन में है फूल बहुत पंखुड़ियों को तोड़ने में काँपेगी उंगलियां ख्वाहिश बस इतनी पंखुड़ियां सूखने से पहले आये तितलियां #निशीथ ©Nisheeth pandey #Titliyaan कुछ बच्चे हैं फड़फड़ाती तितलियों के फेर में उल्छे एक बच्चा उसी जगह बैठा है लेकर उदासी के गुच्छे मासूमियत की कितनी गहरी है उदासियां कोई तितली आये दे जाए शायद तसल्लियां लफ़ज है अभी रूठा रूठा सा लेकर कड़वाहट
#Titliyaan कुछ बच्चे हैं फड़फड़ाती तितलियों के फेर में उल्छे एक बच्चा उसी जगह बैठा है लेकर उदासी के गुच्छे मासूमियत की कितनी गहरी है उदासियां कोई तितली आये दे जाए शायद तसल्लियां लफ़ज है अभी रूठा रूठा सा लेकर कड़वाहट
read moreNisheeth pandey
🇮🇳🇮🇳 मैं एक बार फिर विश्व विजयी भारत की राह पर हूँ🇮🇳🇮🇳 ------------- मैं रंग रूप से सुनहरा सा चमकता हूँ,🇮🇳 मैं भारत हूँ जग में शक्तिरूपी चेहरा हूँ।🇮🇳 मेरी धरती की खेती सोने चांदी से भी बड़ी है,🇮🇳 मैं देश हूँ" प्रगतिशील भारत" हूँ।🇮🇳 मैं जग में हिमालय सा ऊंचा ,और सागर सा फैला हूँ,🇮🇳 मैं दिवाली सा जगमग ,होली सा रंगीन हूँ।🇮🇳 मैं विकास की मिसाइल और प्रगति की चन्द्रयान हूँ🇮🇳 मैंने चाँद और मंगल पर ध्वज फहरा लिया,🇮🇳 अब तो सूरज की आग में खेलना है।🇮🇳 मैं वह भारत हूँ जो एवरेस्ट की चोटी भी तिरंगामय है।🇮🇳 मैं अमन चैन और एकता का बुद्ध हूँ।🇮🇳 मैं नया भारत हूँ, मैं एक बार फिर विश्व विजयी श्रीराम ध्वज हूँ🇮🇳 🇮🇳🇮🇳 मैं एक बार फिर विश्व विजयी भारत की राह पर हूँ🇮🇳🇮🇳 #निशीथ 🌷🇮🇳🌷🇮🇳🌷🇮🇳🌷🇮🇳🌷🇮🇳🌷🇮🇳 ©Nisheeth pandey #Sunhera 🇮🇳🇮🇳 मैं एक बार फिर विश्व विजयी भारत की राह पर हूँ🇮🇳🇮🇳 ------------- मैं रंग रूप से सुनहरा सा चमकता हूँ,🇮🇳 मैं भारत हूँ जग में शक्तिरूपी चेहरा हूँ।🇮🇳 मेरी धरती की खेती सोने चांदी से भी बड़ी है,🇮🇳 मैं देश हूँ" प्रगतिशील भारत" हूँ।🇮🇳
#Sunhera 🇮🇳🇮🇳 मैं एक बार फिर विश्व विजयी भारत की राह पर हूँ🇮🇳🇮🇳 ------------- मैं रंग रूप से सुनहरा सा चमकता हूँ,🇮🇳 मैं भारत हूँ जग में शक्तिरूपी चेहरा हूँ।🇮🇳 मेरी धरती की खेती सोने चांदी से भी बड़ी है,🇮🇳 मैं देश हूँ" प्रगतिशील भारत" हूँ।🇮🇳
read moreNisheeth pandey
जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Sukha जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना।
#Sukha जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना।
read more