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Best खाबो Shayari, Status, Quotes, Stories

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Rabindra Kumar Ram

" उल्फते एहसास का ख़बर किसको है , खामखां मैं यू ही बिगड़ रहे हैं , हो जो एहसास तुझे भी तो बता देना , बेफजूल ही तेरा खाबो-ख्याल पाल रहे हैं ." --- रबिन्द्र राम #उल्फते #ख़बर

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" उल्फते एहसास का ख़बर किसको है ,
खामखां मैं यू ही बिगड़ रहे हैं ,
हो जो एहसास तुझे भी तो बता देना ,
बेफजूल ही तेरा खाबो-ख्याल पाल रहे हैं ." 

                          --- रबिन्द्र राम  " उल्फते एहसास का ख़बर किसको है ,
खामखां मैं यू ही बिगड़ रहे हैं ,
हो जो एहसास तुझे भी तो बता देना ,
बेफजूल ही तेरा खाबो-ख्याल पाल रहे हैं ." 

                          --- रबिन्द्र राम 

#उल्फते #ख़बर

pk Love Sayr

#pk #Love #sayr #उम्र #सपना #खाबो,खयाँलो #हम दो #हमारे दो #जान #होहब्बत वहू बेवफॉ हो जाऐगें।

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Farhan Raza Khan

नाजाने कितने बर्स मैं खाबो में रहा अभी आंख खुली तो सवेरा सा लगता है अब हिकायतो में ही काम आएंगी ये खाबो ख़यालो की दास्तां भी।। NaJane kitne bars main khabo main Raha Abhi aankh khuli to savera sa Lagta hai

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नाजाने कितने बर्स मैं खाबो में रहा 
अभी आंख खुली तो सवेरा सा लगता है

अब हिकायतो में ही काम आएंगी 
ये खाबो ख़यालो की दास्तां भी।।
 
NaJane kitne bars main khabo main Raha
Abhi aankh khuli to savera sa Lagta hai

Ab Hikaayto main hi kaam aayengi
Ye khabo khayalo ki dastan BHI... नाजाने कितने बर्स मैं खाबो में रहा 
अभी आंख खुली तो सवेरा सा लगता है

अब हिकायतो में ही काम आएंगी 
ये खाबो ख़यालो की दास्तां भी।।
 
NaJane kitne bars main khabo main Raha
Abhi aankh khuli to savera sa Lagta hai

Farhan Raza Khan

मैं खाबो में ही मुत्मइन रहा तुम हक़ीक़त बन के किसी और कि आरज़ू हो गए समझाया नासमझ को मगर ये ज़िद पे अड़ा रहा एक शाम और हिज्र की देहलीज़ पे खड़ा रहा गवा के तुम्हे जो लौटा मैं घर कई दिनों तक खाली कमरो में तुम्हे तलाशता रहा

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मैं खाबो में ही मुत्मइन रहा
तुम हक़ीक़त बन के किसी और कि आरज़ू हो गए

समझाया नासमझ को मगर ये ज़िद पे अड़ा रहा
एक शाम और हिज्र की देहलीज़ पे खड़ा रहा 

गवा के तुम्हे जो लौटा मैं घर 
कई दिनों तक खाली कमरो में तुम्हे तलाशता रहा

हक़ीक़त से कभी बनी नही 
खाबो से पड़ी दोस्ती भारी 

कुछ यूं भी ज़िन्दगी चली 
मगर एक ही जगह खड़े रहे कर।। मैं खाबो में ही मुत्मइन रहा
तुम हक़ीक़त बन के किसी और कि आरज़ू हो गए

समझाया नासमझ को मगर ये ज़िद पे अड़ा रहा
एक शाम और हिज्र की देहलीज़ पे खड़ा रहा 

गवा के तुम्हे जो लौटा मैं घर 
कई दिनों तक खाली कमरो में तुम्हे तलाशता रहा


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