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Md Aamir Hussain
महिलाएं इतनी जटिल होती हैं कि हमेशा उनका दिमाग बदलता रहता है... जैसे : 18 साल की उम्र में वह #सुंदर आदमी चाहती है....! 25 साल की उम्र में वह #परिपक्व आदमी चाहती है...! 30 साल की उम्र में वह #सफल आदमी चाहती है.....! 40 साल की उम्र में वह #स्थापित आदमी चाहती है.....! 50 साल की उम्र में वह #वफादार पुरुषों को चाहती है.....! 60 साल की उम्र में वे #सहायक पुरुष चाहती है.....! पुरुष बहुत सरल हैं; उन्होंने अपने जीवन में किसी भी बदलती हालत के लिए अपना स्वाद कभी नहीं बदला। 18 साल की उम्र में वह #सुंदर महिलाओं को पसंद करता है..! 25 साल की उम्र में वह #सुंदर महिलाओं को पसंद करता है..! 30 साल की उम्र में वह #सुंदर महिलाओं को पसंद करता है...! 40 साल की उम्र में वह #सुंदर महिलाओं को पसंद करता है.....! 50 साल की उम्र में वह #सुंदर महिलाओं को पसंद करता है.....! वह 60 साल की उम्र में वह अभी भी #सुंदर महिलाओं को पसंद करता है.....! 70 और 80 की उम्र में भी जब वह मुश्किल से चल पाता है तब भी वह #सुंदर महिलाओं को ही पसंद करता है.....! वह स्वर्ग में #अप्सरा चाहता है..........! सभी पुरुषों को उनके #अनुशासित_व्यवहार के लिए समर्पित.... 😁😁😁😁😁😁😁 ©Md Aamir Hussain #dhundh
Anamika
गुस्सा.. परिपक्व या अपरिपक्व होने से नहीं आता .. आता है जब आप ऊपर तक लबालब भर जाते हैं ,और बिन गल्ती के भी सहन करते जाते हैं ,या रख लेते है बिन चाहे किसी से उम्मीद.. तब शायद अंदर की अग्नि को शांत होने के लिए चाहिए होती है अंतर्मन के नीर की.. शायद उसको ही कहते होंगे खुद से खुद को ही पर्सनल स्पेस देना .. कुछ यूं ही.. #गुस्सा #यूंहीएकख्याल #यूंही_कभी #पर्सनलस्पेस #तूलिका #परिपक्व #अपरिपक्व
Parasram Arora
किसी भी कविता को परिपक्वता देने क़े लिए क्यों लेना पड़ता है सहारा झूठ और अबूझ कल्पनाओं का किसी कवि को ? अक्सर कोई भी कविता प्रेमी श्रोता. यकीन नहीं करपाता कविता मे आजमायें गए . झूठे सच . का लेकिन इसके बावजूद उस तथाकथित कविता को सुनने या पड़ने मे अपने बहुमूल्य वक़्त की कुर्बानी देने मे नहीं हिचकता वो. l क्यों क़ि उस श्रोता . क़े भीतर भी कही छोटा मोटा कवि जरूर रहता है और उसमे भी उसी प्रकार क़े झूठ और . कल्पनाये अक्सर अंगड़ाइयां लेती रहती हैँ #परिपक्व कविता?
#परिपक्व कविता?
read morePriya Vachhani
आईना मेरे घर का आईना भी कितना झूठ बोलता है आज खड़ी हुई इसके सामने तो दिखाने लगा मुझे मेरे बालों से झांकती हलकी सी चाँदी चेहरे पर उभरती अनुभव की रेखाएं हल्का रंग बदलती आँखे उनके आस-पास बनते काले से घेरे चेहरे की परिपक्वता मगर...कहाँ परिपक्व हुई मैं अभी अब भी कभी-कभी जागता है मेरे अंदर का बच्चा जो करना चाहता है बच्चों जैसी नादानियां जिसमे छुपी हैं अब भी बच्चों जैसी शरारतें खेलना चाहता है मिटटी मेंफिर उन्हीं दोस्तों संग वहीँ झगड़ना, वहीँ खेलना तितलियों को पकड़ना मोर के पंखों को किताबों में संजोना न परवाह समय की न फ़िक्र दुनियादारी की बस चाहता है एक उन्मुक्त सा जीवन जीना बताओ........ कहाँ परिपक्व हुई मैं अभी कितना झूठ बोलता है न मेरे घर का आईना... #wod #आईना
wod #आईना
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