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Best खाट Shayari, Status, Quotes, Stories

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kumaarkikalamse

अब  गली  मोहल्लों  में  वो  पहले  जैसी बात नहीं होती, 
बचपन  की अठखेलियों  वाली अब  वो रात नहीं होती!! 

वो  पहले  पहुँचने  की  होड़  में, फीते  भी  नहीं  बाँधना, 
हार के भी हँसते  रहते थे, क्यों अब  वो मात नहीं होती!! 

भीगने की चाह में, वो बादल गिरते ही छत पर चले जाना, 
होती तो है अब भी बारिश, पर अब वो बरसात नहीं होती!

मखमली बिस्तर तो हैं घर के हर कमरे में सोने को 'कुमार' 
पर  अब  मकानों  में  लकड़ी  वाली वो खाट नहीं होती!! 

  #YQBaba #Kumaarsthought #YQDidi #हिंदी #hindi #she'r #kumaarsher #Kumaarsthought #kumaargazal #gazal #ग़ज़ल #कुमारग़ज़ल 

#बात #रात #मात #बरसात #खाट

Ravikant Singh Azamgarh

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#Pehlealfaaz घर अधूरा #खाट बिना,
#तराजू अधूरा #बाट बिना,
#राजा अधूरा #ठाठ बिना,
#देश अधूरा #राजपूत के बिना. .

Ravikant Singh Azamgarh

घर अधूरा #खाट बिना, #तराजू अधूरा #बाट बिना, #राजा अधूरा #ठाठ बिना, #देश अधूरा #राजपूत के बिना..

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 घर अधूरा #खाट बिना,
#तराजू अधूरा #बाट बिना,
#राजा अधूरा #ठाठ बिना,
#देश अधूरा #राजपूत के बिना..

Bambhu Kumar (बम्भू)

थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को #डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से आ रही थी वह चली खोई हुई #जज्बात में क्या पता उसको कि कोई #भेड़िया है घात में

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2.
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया... थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को
सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को

#डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई #जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई #भेड़िया है घात में

DEV FAIZABADI

#खाट का दुश्मन (अवधी, हास्य)#nojotohindi#poems#Shayari#

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खाट का दुश्मन
~~~हास्य (अवधी)~~~
काव बताई हमार शरीर काहे का झुरात बाय।
हमरे खटिया कै दुश्मन जवन हमै खात बाय।

खाट कै खटमल प्रेम से खुनवा चूसै मा लीन।
काव कही शरम लागत एक जगहा पै काटत तीन।
दवा मिलत नाही बा नीक यही से ओसे मात बाय।
हमरे खटिया कै.................................... ...।

उठ-उठ बैठेन खाट पै जब रात के खटमल काटै।
जौ मन‍ई होय तौ बोलै अब खटमल का कैसे डांटै।
कहत 'देव' आखिर मन मा केतना पैइना दांत बाय।
हमरे खटिया कै................. ...... ‌.... ............।

मनावत ह‍ई अपने मन मा सेठ के खाट मा जल्दी जा।
सब दुबलन का छोडके तू उनहिक चूसा उनहिक खा।
कम करा तोंद कै  फूलब जे  ढ़ेर-ढेर के  खात बाय।
हमरे खटिया कै..........................................।
       -देव फैजाबादी #NojotoQuote #खाट का दुश्मन (अवधी, हास्य)#nojotohindi#poems#shayari#

Sahdev Danga

जिस तरा खेत म #खाट जरूरी होवै स, नूए #army#जाट जरूरी होवै स🦁🐯🦁🐯फौजी

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 जिस तरा खेत म #खाट जरूरी होवै स, नूए #Army म #जाट जरूरी होवै स🦁🐯🦁🐯फौजी

सम्राट सुआटा

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कुरकुरू गुम्मा पाथिये, सबरे पेड़े काट।
लकड़ी मिले न रोटी को, न दरवाजे खाट।।

न दरवाजे खाट, साफ हवा न पाना।
पेड़ काटने वाले, न एक पेड़ लगाना।।

कह सुआटा सम्राट, घोर है कलयुग आया।
तचती छतें चाहिए, न चाहिए पेड़ की छाया।।

WRITER AKSHITA JANGID

This is my second story.. please read and give me your feedback ... रीना घर में इकलोती थी,इसलिए सबकी प्यारी थी | घर में कोई और ना होने की वजह से सब उसे बहुत प्यार करते थे और वो भी सबको प्यार करती थी | उनके घर पर खाट हुआ करती थी (जो गरीबी की निशानी थी) लेकिन रीना को वो बहुत पसंद थी | बचपन से लेकर अब तक उसने उसे अपने से अलग नहीं किया था | वो उसे अपने बचपन की निशानी मानती थी | उससे उसकी कई यादें जुड़ी थी | वो उसने बैठ कर खेला करती थी, दादी के साथ उसी में सोया करती थी, वही बैठ पढ़ा करती थी | वो उ

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 This is my second story.. please read and give me your feedback ...


रीना घर में इकलोती थी,इसलिए सबकी प्यारी थी | घर में कोई और ना होने की वजह से सब उसे बहुत प्यार करते थे और वो भी सबको प्यार करती थी |

उनके घर पर खाट हुआ करती थी (जो गरीबी की निशानी थी) लेकिन रीना को वो बहुत पसंद थी | बचपन से लेकर अब तक उसने उसे अपने से अलग नहीं किया था | वो उसे अपने बचपन की निशानी मानती थी |
उससे उसकी कई यादें जुड़ी थी | वो उसने बैठ कर खेला करती थी, दादी के साथ उसी में सोया करती थी, वही बैठ पढ़ा करती थी | वो उ

Sachin Ken

वो छोटी सी एक कोठरी उसपर नज़र पड़ते ही कुछ धुंदली सी यादें ताज़ा हो गई अक्सर एक बूढ़ी अम्मा के खाँसने की आवाज आती रहती थी जिससे उसके पास जाने पर कुछ दवाइयों की गन्ध सी आने लगती थी कई बार शाम के टाइम खेलते खेलते उसमे जा छिपते थे

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वो 
छोटी सी
एक कोठरी

उसपर नज़र पड़ते ही कुछ धुंदली सी यादें ताज़ा हो गई
अक्सर एक बूढ़ी अम्मा के खाँसने की आवाज आती रहती थी जिससे 
उसके पास जाने पर कुछ दवाइयों की गन्ध सी आने लगती थी
कई बार शाम के टाइम खेलते खेलते उसमे जा छिपते थे
हमें देखकर वो बूढ़ी अम्मा भी बड़ी खुश होती थी,कई बार किवाड़ के पीछे या अपनी खाट के नीचे छिप जाने का इशारा भी करती थी

उस कोठरी में एक खाट कुछ कपड़े  और अलमारी में कुछ दवाओं की बोतलें रखी रहती थीं
कई बार स्कूल से लौटते वक्त बारिश से भी बचाया था उस कोठरी ने,आज बर्षों बाद जब नज़र पड़ी तो उसपर मोटा सा एक ताला लटका था,बाद में पता लगा कि अब उस कोठरी को लेकर तीन भाइयों में झगड़ा रहता है 
एक भाई कहता है,"माँ को में रोटी देता था इसलिए कोठरी का हकदार में हूँ"
दूसरा भाई कहता है, "मैं माँ की दवाई लाता था इसलिए कोठरी तो मेरी है"
तीसरा भाई कहता है,"माँ के अन्तिम संस्कार के लिए पैसे मैंने दिए थे तो कोठरी का असली हक़दार मैं हूँ"
 

अब तीन भाइयों में झगड़े की जड़ बनी हुई है
 वो 
छोटी सी 
एक कोठरी

 वो 
छोटी सी
एक कोठरी

उसपर नज़र पड़ते ही कुछ धुंदली सी यादें ताज़ा हो गई
अक्सर एक बूढ़ी अम्मा के खाँसने की आवाज आती रहती थी जिससे 
उसके पास जाने पर कुछ दवाइयों की गन्ध सी आने लगती थी
कई बार शाम के टाइम खेलते खेलते उसमे जा छिपते थे

अलक

अध्यादेश के नाम पर मची है बंदरबाट सबसे आगे कौन है देखन बैठें खाट ।। देखन बैठे खाट, ये कैसी है मनमानी कैसा फिर लोकतन्त्र जब हो नियम की हानि।। कठिन समय के खातिर नियम इसका आया पर नेताओं ने मिलकर कर दिया सफाया।। अशोक सिंह आज़मगढ़

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अध्यादेश के नाम पर मची है बंदरबाट
सबसे आगे कौन है देखन बैठें खाट ।।
देखन बैठे खाट, ये कैसी है मनमानी
कैसा फिर लोकतन्त्र जब हो नियम की हानि।।
कठिन समय के खातिर नियम इसका आया
पर नेताओं ने मिलकर कर दिया सफाया।।

अशोक सिंह आज़मगढ़
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