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Rabindra Kumar Ram
" बिछड़ रहे तुम से ये भी कोई बात हैं, यू मिलना हमारा कही जायज़ ना ठहरा, उलफ़ते अब भी बदहवास हो जायेगी, हमारे दरीचों से जब तेरी खुशबू ना आयेगी ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " बिछड़ रहे तुम से ये भी कोई बात हैं, यू मिलना हमारा कही जायज़ ना ठहरा, उलफ़ते अब भी बदहवास हो जायेगी, हमारे दरीचों से जब तेरी खुशबू ना आयेगी ." --- रबिन्द्र राम #बिछड़ #जायज़ #उलफ़ते #बदहवास #दरीचों #खुशबू
अनजान मुसाफ़िर
उन्हें ख़बर है, कि मैं बेखबर हूं और... मुझे मालूम है, कि वो बदहवास हैं ©अनजान मुसाफ़िर #बेखबर #बदहवास #अनजान_मुसाफिर
@thewriterVDS
कल शाम की बात से उदास हूं मैं हताश हूं मैं फूलों की तरह, शुलों की तरह महकाने के लिए, चुभाने के लिए इसीलिए बदहवास हूं मैं बे मौसम की बातें, बातें पुरानी जो दर्द दे जाती हैं रूमानी–रूमानी बातों की चटनी का स्वाद ही अजीब है So उदास हूं मैं, हताश हूं मैं, बदहवास हूं मैं। कल शाम की बात से उदास हूं मैं हताश हूं मैं #फूलों की तरह, #शुलों की तरह महकाने के लिए, चुभाने के लिए इसीलिए बदहवास हूं मैं बे मौसम की बातें, बातें पुरानी जो दर्द दे जाती हैं रूमानी–रूमानी बातों की #चटनी का स्वाद ही अजीब है
Vikas Tiwari
महेंद्र सिंह धोनी ने क्रिकेट की दुनिया को अलविदा कह दिया धोनी एक भाव का नाम भी है। समभाव। गीता में स्थितप्रज्ञ की अवधारणा को साकार करने वाले खिलाड़ी रहे हैं। विश्व कप जीतने के बाद धोनी मीडिया से दूर हो गए। अगर मेरी स्मृति में कोई चूक नहीं है तो उस विजय के बाद धोनी ने कोई इंटरव्यू नहीं दिया। धोनी के लिए जीत खेल का हिस्सा थी न कि खेल जीत का हिस्सा। तनावपूर्ण क्षणों में तनाव रहित खेलने के फ़न में माहिर थे। राँची से अपने रिश्ते को गहरा किया। दुनिया भर से विजय प्राप्त कर राँची ही लौटते रहे। वहाँ घर बनाया। शहर के लोगों के बीच रहे। राँची में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच होने लगा है। मुमकिन है उसमें भी धोनी का अहम योगदान हो। धोनी ने पैसा भी कमाया मगर पुराने दोस्तों को साथ रखा। मुझे क्रिकेट खिलाड़ियों के रिटायर होने का रूपक बहुत शानदार लगता है। पहले भी कई बार लिख चुका हूँ। मैं भी ऐसे सपने देखता हूँ। अचानक पत्रकारिता छोड़ कर कहीं गुमनाम हो जाने की। किसी क्लास रूम में चुपचाप जीवन समर्पित कर देता या किसी लाइब्रेरी में सैंकड़ों किताबों को पढ़ने में खुद को खपा देता। छोड़ने का फ़ैसला अपना होना चाहिए। जीवन भर प्रासंगिक बने रहने की होड़ जीवन को ही अप्रासंगिक बना देती है। मैं हमेशा वो मैच ज़रूर देखता था जो किसी खिलाड़ी का आख़िरी होता था। आख़िरी मैच में चाहता था कि उसकी सेंचुरी हो जाए या हैट-ट्रिक विकेट ले ले। शाम को मैच ख़त्म होने के बाद मैदान से उसका लौटना विराट दृश्य की तरह प्रकट हो जाता था। अपनी जगह छोड़ने का अपना ही सुख है। काश ! हर किसी को खिलाड़ी की तरह इसकी पहचान होनी चाहिए कि बल्ला रखने का समय आ गया है। क्रिकेट के खिलाड़ी शोहरत पाते हैं तो उसे अलविदा कह कर अपने शहर लौट जाते हैं। लक्ष्मण, द्रविड़ और न जाने कितने उदाहरण मिलेंगे। वे बैटरी और कार के विज्ञापनों सहारे लोगों के ड्राइंग रूम में बार-बार नहीं लौटते। कुछ बहुत दिनों तक लौटते रहते हैं। धोनी का खेल कई दिनों से नहीं देखा है। जितना भी देखा है यह खिलाड़ी मैदान में एक आश्चर्य और आदर्श दोनों लगा है। धोनी की जीत और रिकार्ड मैदान में उनकी शालीनता के सामने मामूली लगते हैं। शुभ विदा धोनी । #बदहवास 🖤 #MSDhoni
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