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मन और मंज़िल यहां वहां हम रहे भटकते, यहां वहां की र

मन और मंज़िल यहां वहां हम रहे भटकते, यहां वहां की राहें तकते
मन ही स्थिर रहा नहीं तो, कैसे मंजिल तलक पहुंचते

मन मंजिल का संगम ऐसा, जितना स्थिर जितना संयत
फिर पाने की प्रायिकता उतनी, सीधे सीधे मिलते रस्ते

कुछ न दुर्गम कुछ न दुर्लभ, न कुछ रहता कभी असंभव
ठान लो मन में चलने की तो, पहुंचोगे फिर हंसते हंसते #dixitg आज का विचार
मन और मंज़िल यहां वहां हम रहे भटकते, यहां वहां की राहें तकते
मन ही स्थिर रहा नहीं तो, कैसे मंजिल तलक पहुंचते

मन मंजिल का संगम ऐसा, जितना स्थिर जितना संयत
फिर पाने की प्रायिकता उतनी, सीधे सीधे मिलते रस्ते

कुछ न दुर्गम कुछ न दुर्लभ, न कुछ रहता कभी असंभव
ठान लो मन में चलने की तो, पहुंचोगे फिर हंसते हंसते #dixitg आज का विचार