ना खाने को मिलता ना सोने को और ना ही ढंग से रहने को,"अब आप यूं कह लीजिए धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का"कर्णधार साहब किसी काम से आज बाहर चले गए थे,तभी तीनों भानु प्रताप,रामाधार,विश्वेश्वर जैसे ही चैन से एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालते हैं,तभी बहती अश्रुधार को देखकर प्रतीत होता है जैसे बादल का सीना फट गया है,और होने वाले अकूत वर्षा थमने का नाम ही नहीं ले रही हो| कहा जाता है कि सुख की घड़ी इतना जल्दी बीतती है,कि पता ही नहीं चलता कब जीवन में दुख आ गया,इसी बात चिंतन करते-करते घंटो बीत गए|,आकस्मिकता से,भानु प्रताप:- यार भाइयों हम सब तो बहुत रो धो लिए,अगर कर्णधार साहब आ गए तो हम सब की हजामत बनने में तनिक देर ना लगेगी|रामाधार,विश्वेश्वर एक संघ:-हां वो तो है. तीनों आपस में:- लगता है अब हम सबको कर्णधार साहब मरने के बाद ही मुक्ति प्रदान करेंगे.कर्णधार साहब को कोठी के भीतर दाखिल होते ही देख वो तीनों इतना भयभीत हुए जैसे काल को देखकर मरने वाला प्राणी होता है. इस दफा उन्हें बताने की जरूरत ना पड़ी वो खुद ही समझ गए"जो मजा फकीरी में है वो मजा दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलता" साहब को देखते ही अपनी-अपनी हालत ऐसी बना लिए जैसे दुनिया का सारा सुख इन्हें ही मिल गया हो,उदास चेहरे पर खुशी लगाकर सब अपने-अपने #राष्ट्रवादी_युवा_कवि_सुधांशु_निराला# फकीरी कहानी का अगला अंश:-