प्यार से समझाया जा रहा है। गुडी गुडी बातें की जा रही हैं। कोई यूएपीए, रासुका लगाने की मांग नहीं कर रहा। गोली नहीं चली, लाठियां नहीं बरसाईं। अरबों का नुकसान हंसते हंसते झेल लिया। दूसरों की नारेबाजी, पत्थरबाज़ी दहशतगर्दी लगती है। विरोध दर्ज कराना गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाता है। हवालात में बेरहमी से मारा जाता है। घर तोड़ दिए जाते हैं। और ये भेदभाव आज़ादी के बाद से ही चला आ रहा है। उन सरकारों में भी, जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष थीं। उन लोगों से पूछें, जिन्होंने 80-90 का दौर देखा है। मीसा, टाडा, रासुका, सब धर्मनिरपेक्ष सरकारों की देन हैं। इन काले क़ानूनों का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किन पर हुआ, ये सब जानते हैं। 25-25 साल इन क़ानूनों के तहत जेलों में सड़ा दिया। इस सरकार को दोष देना बेकार है। इस सरकार में भी वही लोग हैं, जो पहले धर्मनिरपेक्ष कही जाने वाली सरकारों में थे। आगे जो सरकार बनेगी, उसमें भी यही होंगे। कुछ नहीं बदलता, सिर्फ चेहरे बदल जाते हैं। ©Babul Inayat प्यार से समझाया जा रहा है। गुडी गुडी बातें की जा रही हैं। कोई यूएपीए, रासुका लगाने की मांग नहीं कर रहा। गोली नहीं चली, लाठियां नहीं बरसाईं। अरबों का नुकसान हंसते हंसते झेल लिया। दूसरों की नारेबाजी, पत्थरबाज़ी दहशतगर्दी लगती है। विरोध दर्ज कराना गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाता है। हवालात में बेरहमी से मारा जाता है। घर तोड़ दिए जाते हैं। और ये भेदभाव आज़ादी के बाद से ही चला आ रहा है। उन सरकारों में भी, जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष थीं। उन लोगों से पूछें, जिन्होंने 80-90 का दौर दे