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कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए , कर कर

कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए ,
कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये ।

मंडी बंद करण की बात अर फसलों के रेट कंपनी के हाथों में हो लिए ,
किसान खड़े लखावे कर्जे के मुंह में बहुत बड़े हो लिए ।

बैल बुग्गी छुटगी , बैंकों त लोन लेकर किसान दिवाले हो लिए,
सरकार इभी कोनी मान्दी , हालात बहुत घणै माड़ै हो लिए ।

कानून जो बदले सरकार ने , किसानों के अरमान मसलने वाले हो लिए ,
पेट की भूख , बालकां की पढ़ाई और ढूंढ के सपने चकनाचूर हो लिए ।

कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए ,
कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये । आजकल किसानों की हालात पर यह कविता है।

घात - शरीर , घणै - बहुत ज्यादा , इभी - अब भी , मान्दी - मानती , माड़ै - खराब , ढूंढ - मकान ,


कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए ,
कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये ।
कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए ,
कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये ।

मंडी बंद करण की बात अर फसलों के रेट कंपनी के हाथों में हो लिए ,
किसान खड़े लखावे कर्जे के मुंह में बहुत बड़े हो लिए ।

बैल बुग्गी छुटगी , बैंकों त लोन लेकर किसान दिवाले हो लिए,
सरकार इभी कोनी मान्दी , हालात बहुत घणै माड़ै हो लिए ।

कानून जो बदले सरकार ने , किसानों के अरमान मसलने वाले हो लिए ,
पेट की भूख , बालकां की पढ़ाई और ढूंढ के सपने चकनाचूर हो लिए ।

कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए ,
कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये । आजकल किसानों की हालात पर यह कविता है।

घात - शरीर , घणै - बहुत ज्यादा , इभी - अब भी , मान्दी - मानती , माड़ै - खराब , ढूंढ - मकान ,


कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए ,
कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये ।