शिकवे-शिकायत सारा भरम तोड़ते हैं, आओ अपना-अपना अहम तोड़ते हैं। वो जो अहले इश्क़ को मिलने नहीं देता, मेरा हो या तुम्हारा वो धरम तोड़ते हैं। कृष्ण गोपाल सोलंकी शुभरात्रि दोस्तों.......