कितना आसान था बचपन का वो खेल, छुक छुक चलती जैसे रेल, गुड्डा मेरा बनता दूल्हा, गुड्डन उनकी बनती दुल्हन, मैं घर सजाता, खूबसूरत परी को लाता, बैठा उसको प्यार से, गुड्डे से बातें कराता, दोनों मिल घर चलाते, पहिए घर की गाड़ी के चलते जाते, जैसे स्वर्ग से सुंदर संसार का मेल था, कितना आसान बचपन का वो खेल था, पर अब गुड्डन मेरी बड़ी हो गई, वो छोटी प्यारी, अपने पैरों पर भी खड़ी हो गई, गुड्डा उनका है अब, वो भी हो गया सयाना, खेल का बदला सा है पैमाना, अब कहते हैं ये खेल नहीं,बिन पैसे के कोई मेल नहीं, मेरी गुड्डन क्या खाली हाथ घर जाएगी, अंजाम पड़ोसी को क्या मुंह दिखाएगी, पढ़ा–लिखा कोई क्या एहसान किया, गुड्डा है उनका, भगवान ने उनको इनाम दिया, अब गुड्डे का घर भी हमें सजाना है, लाली का ब्याह रचाना है, दिल कहता है, शायद नहीं मिलेगा अब वैसा गुड्डे गुड़िया का मेल, कितना आसान था बचपन का वो खेल, कितना आसान था बचपन का वो खेल.. Peeyush Umarav #NojotoQuote कितना आसान था बचपन का वो खेल, छुक छुक चलती जैसे रेल, गुड्डा मेरा बनता दूल्हा, गुड्डन उनकी बनती दुल्हन, मैं घर सजाता, खूबसूरत परी को लाता, बैठा उसको प्यार से, गुड्डे से बातें कराता, दोनों मिल घर चलाते, पहिए घर की गाड़ी के चलते जाते, जैसे स्वर्ग से सुंदर संसार का मेल था,