घड़ी की सुईयां तेज़ी से बढ़ रही थी। #षडयंत्र_के_आठ_अंक मत्स्य भोज की थी वो रात अंतिम बार, हुई क्या थी बात चले गए तुम उस रोज ऐसे देकर कैसा ह्रदयघात संवाद हुआ था कैसा उस दिन तिथि रही होगी वो सात किस शब्द से भेदा तूने तीर से ज्यादा चुभी थी बात वही तिथि फिर लौट आई माह बीते समय तिथि सब आठ फिर यादों ने घेरा मुझको जब टूटी थी अंतिम सांस उस दिन जाना अर्थ अनाथ जब छूटा अपनो का साथ भोर हुई तो लगी थी भीड भीड में दिखती अनेको ठाट तब से अब तक कहा नही कोई मेरा अब रहा नहीं राख बेच कर चुपड के चंदन कर रहे वो नंगा नाच समान अंक है सबमे आठ ग्रहप्रवेश की किश्तें आठ किलकारी की कीमत आठ कर कनक की पुट्टल आठ आज हो गए इनके ठाठ बन गए सब साहब लाट कुकर्म है किया जो सबने मरो प्यासे मिले न घाट #Sadharanmanushya ©#maxicandragon #षडयंत्र_के_आठ_अंक मत्स्य भोज की थी वो रात अंतिम बार, हुई क्या थी बात चले गए तुम उस रोज ऐसे देकर कैसा ह्रदयघात संवाद हुआ था कैसा उस दिन