दाना पानी की खातिर, मजबूर हो गये रिश्ते नाते छोड़कर सबसे ,दूर हो गये लाख कमाकर भी, अपनापन न खरीद सके लोग समझते हैं हम कितने ,मगरूर हो गये सुख दुख हमने मिलकर, बांटा साथ कभी गुजरे जमाने के ये सब तो ,दस्तूर हो गये वो बगिया ताल तलैया, और मिट्टी की खूशबू एक एक करके अब वो सब ,कोहिनूर हो गये यादों के मंजर ने फिर ,कैसी करवट बदली है संजय गोरखपुर से तुम तो ,बुरहानपुर हो गये संजय श्रीवास्तव दाना पानी