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ग़ज़ल **************************************** सच

ग़ज़ल 
****************************************
सच है मुझे ,प्यार जताना न आया,
लाख चाहा तुमको ,भुलाना न आया

अश्क पी लेने का, जो हुनर था मुझमें,
बंद पलकों में उसको ,छुपाना न आया

कह देता अगर वो , रुक जाता यकीनन,
यार को ही तो मुझको,  मनाना न आया

जामे उल्फत की महफ़िल में आये हैं वो 
इश्क का दो घूँट जिसको,पिलाना न आया

इश्क की आग में,   जल रहा है वो देखो
उस सितमगर सनम को, बुझाना न आया

मुकम्मल ग़ज़ल की, ख्वाहिश है संजय
सब  आये यहां पर जाने जाना न आया

संजय श्रीवास्तव गजल
ग़ज़ल 
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सच है मुझे ,प्यार जताना न आया,
लाख चाहा तुमको ,भुलाना न आया

अश्क पी लेने का, जो हुनर था मुझमें,
बंद पलकों में उसको ,छुपाना न आया

कह देता अगर वो , रुक जाता यकीनन,
यार को ही तो मुझको,  मनाना न आया

जामे उल्फत की महफ़िल में आये हैं वो 
इश्क का दो घूँट जिसको,पिलाना न आया

इश्क की आग में,   जल रहा है वो देखो
उस सितमगर सनम को, बुझाना न आया

मुकम्मल ग़ज़ल की, ख्वाहिश है संजय
सब  आये यहां पर जाने जाना न आया

संजय श्रीवास्तव गजल