"पधारो म्हारो प्यारो निरालो जयपुर" कुछ दिनों पहले एक शख्स से मुलाकात हो गई जो बातों बातों में यह कह गए कि जयपुर में ऐसा है ही क्या है फिर क्या था। एक जयपुर प्रेमी के बदन में चिंगारियां उत्पन्न हो गईं। धुंआ निकलने लगा। तापमान सीमा से पार होने लगा। फिर मन को संभालते हुए थोड़ी सी ऊंची पर मधुर ध्वनि में उन्हें टोकते हुए कहा "आपने जयपुर में देखा ही क्या है।" कभी देखा है तीन दिशाओं से अरावली पर्वतों में पले जयपुर की चढ़ाई चढ़कर जहां धौलपुरी पत्थर की अद्भुत प्राचीन कला की छवि दिखाई देती है और घाट की गूणी आपके शहर में प्रवेश करते ही जयपुर के गुलाबी नगर होने के साक्ष्य प्रस्तुत करती है कभी देखा है आठ दरवाजों को जिनके बीच शहर रोशनी और उमंग से जगमगाता रहता है कभी घूमे हो छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़ आदि के बाजारों में पैरों पर जहां हर कदम पर इक नवीन दृश्य आंखों को आकर्षित करता है