नमस्कार,
यु तो कहने कहने की बात है,काँमा लगने से शब्द के मायने ही बदल जाते है!लेकिन यह हमे सोंचना ही होगा कि वो कौन सेे केंद्र विंदु थे कि जम्मु & कास्मीर भारत मे रह कर भी भारत का नही था!कही तो राजनैतिक स्वार्थ की परीपाटी थी जो अखील भारत के तश्वीर से जम्मु & कास्मीर कटा हुआ था!वहां हालात ठीक नही रहे,वो भी एक दो दिन नही,बल्कि पुरे सत्तर दशक तक!आज जो विरोध हो रहे है कि तीन सौ सत्तर क्यो स्क्रेप किया गया,वो सरासर देश हित के विरुद्ध है! मै सरकार के कदम को सही मानता हूं,इसके दुरगामी परिणाम होंगे!
अब विचार यह करना होगा कि आखीर कार सरकार को यह कदम क्यों उठाना परा!सरकार परेसान थी अलगाववादियों के हरकतो से!राष्टहित संकट मे आ गया था,वो कहते हैं ना वेगानी शादी मे अब्दुला दिवाना,वो हालात हो गये थे!कभी अमेरीका का राष्ट्राध्यछ तो कभी चीनी निगेहवान वेजा का सलाह दे जाता था कास्मीर मुद्धे पर!
सरकार ने तीन सौ सत्तर हटा कर उन सारी संभावनाओं को ही खत्म कर दिया, जिस के विना पर वेवजह यह लोग दुसरे के घरो मे तांक झांक करते थे!आज के समय चक्र मे केंद्र का यह फैशला मील का पत्थर सावीत होगा,जिसे युगो युगो तक हिन्दुस्तान की आवाम यस गान करती रहेगी!