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मन की व्यथा जब न किसी से कह सकें, न सह ही सकें। त

मन की व्यथा 
जब न किसी से कह सकें,
न सह ही सकें।
तब हम खुद को एक निर्वात में पाते हैं,
जैसे अंतरिक्ष में तैर रहे ग्रह नक्षत्र;
जिन्हें न कोई मंजिल पानी है न ही कोई उद्देश्य,
बस चलते जाते हैं.... होके संज्ञान शून्य।

हाल तब और बुरा हो जाता है...
जब हमारे...बदले हालातों से,
आस पास के वातावरण में कोई फर्क नहीं पड़ता,
न कोई इस शून्यता का कारण पूछता.... न कोई हल ही सुझाता।

कुछ यूं ही स्थिति उस मन की भी होती है, 
जो अपने स्वामी से बगावत कर...
किसी के प्रेम में पड़ जाता है।
स्वामी इन उमड़ते विचारों को रोकना चाहता है,
और मन है कि बार बार वहीं जाता है।
और इसी अंतर्द्वंद के चलते...एक बार फिर,
विचार शून्यता की राह पर अग्रसर हो जाता है।

©Akarsh Mishra when you fall in love
मन की व्यथा 
जब न किसी से कह सकें,
न सह ही सकें।
तब हम खुद को एक निर्वात में पाते हैं,
जैसे अंतरिक्ष में तैर रहे ग्रह नक्षत्र;
जिन्हें न कोई मंजिल पानी है न ही कोई उद्देश्य,
बस चलते जाते हैं.... होके संज्ञान शून्य।

हाल तब और बुरा हो जाता है...
जब हमारे...बदले हालातों से,
आस पास के वातावरण में कोई फर्क नहीं पड़ता,
न कोई इस शून्यता का कारण पूछता.... न कोई हल ही सुझाता।

कुछ यूं ही स्थिति उस मन की भी होती है, 
जो अपने स्वामी से बगावत कर...
किसी के प्रेम में पड़ जाता है।
स्वामी इन उमड़ते विचारों को रोकना चाहता है,
और मन है कि बार बार वहीं जाता है।
और इसी अंतर्द्वंद के चलते...एक बार फिर,
विचार शून्यता की राह पर अग्रसर हो जाता है।

©Akarsh Mishra when you fall in love