मन बंजारा, ना जाने भटके रे किसकी राह में, मन है तो हमारा ही, लेकिन आजकल खुद पर काबू नहीं, हमेशा मेरी सोच के परे चले जाता है उसके ख़्याल में। पता नहीं क्यों सवेरे उठकर तेरी ही झलक दिखे, एक महकती चाय में भी तेरी खुशबू मिले, दिनभर की दिनचर्या में भी तेरा ही एहसास मिले, रात की हसीन चांदनी में तेरे ख़्याल से ही सुकून मिले। ना जाने क्यों कशमकश सी, हो रही है दिल में बस तेरे ही लिए, लगता है जैसे तुझ में ही, सिमट जाऊं एक प्यार बनके। मन है मेरा बंजारा, भटक भटक के अंत में, तो चला जाता है उसके ख़्याल में। -Nitesh Prajapati ♥️ Challenge-780 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।