दूसरे की तरक्क़ी पर रश्क करता आदमी, वक़्त अपना बेवज़ह ही व्यर्थ करता आदमी, रचयिता ने रचा है संसार को सबके लिए, आदमी की वजह से ही परेशाँ हर आदमी, सिमटते जंगल पहाड़ों की हुई है दुर्दशा, हर जगह अतिक्रमण करता जा रहा है आदमी, झील,नदिया,नीर-निर्झर हुए दूषित हर जगह, हवाओं में जहर घुलता कारख़ाना आदमी, मंत्रणाएँ कागज़ी ही दिख रही पर्यावरण की, अपने-अपने स्वार्थ में अंधा बना हर आदमी, समय रहते चेत जाओ है भलाई बस इसी में, काल के संताप से बचता न कोई आदमी, बदलता भूगोल भी 'गुंजन' करोड़ो वर्ष में, तब तलक इतिहास में खो जाएगा हर आदमी, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रश्क करता आदमी#