#ग़ज़ल_غزل: २०४ -------------------------- 1222-1222-122 है खाना तो रखा, थाली नहीं है वो क्या है, घर पे घरवाली नहीं है //१ बुरा है हाल तेरे बिन किचन का पियूँ मैं चाय क्या, प्याली नहीं है //२ बियाबां क्यों न हो जाए मेरा घर बगीचा है मगर माली नहीं है //३ लगूँ सरकार को गाली मैं देने अभी इतनी भी कंगाली नहीं है //४ अबे आ जा कमीने भाई मेरे कि ऐसा बोलना गाली नहीं है //५ बहाया ख़ून मज़हब ने यहाँ भी नबातों में भी हरियाली नहीं है //६ कहाँ जाओगे मरकर तुम अदम में कोई कमरा वहाँ ख़ाली नहीं है-//७ न आना हम अदीबों के महल्ले कि इस बस्ती में ख़ुशहाली नहीं है //८ दुआ भी क्या करें हम बर्गे नौ की किसी भी पेड़ में डाली नहीं है //९ बिगड़ जाती हैं फ़सलें 'राज़' वाँ तो जहाँ खेतों की रखवाली नहीं है //१० #राज़_नवादवी© #worldnotobaccoday