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पारखी नहीं था ना, समझ ही नहीं थी। मैंने तो अपना


पारखी नहीं था ना, समझ ही नहीं थी।

मैंने तो अपना सारा चंदन,
लकड़ी के भाव बेच दिया!
 सब कुछ ही तो पा लिया था,
पर अपनी नादानी, नासमझी और होशियारी से,
सब कुछ ही तो खो दिया!

चंदन और लकड़ी में अंतर तक नहीं जानता था,
और पता नहीं जीवन में कितनी बड़ी-बड़ी बातें करता रहा।

मेरा यह अंजाम तो होना ही था!

पारखी नहीं था ना, समझ ही नहीं थी।

मैंने तो अपना सारा चंदन,
लकड़ी के भाव बेच दिया!
 सब कुछ ही तो पा लिया था,
पर अपनी नादानी, नासमझी और होशियारी से,
सब कुछ ही तो खो दिया!

चंदन और लकड़ी में अंतर तक नहीं जानता था,
और पता नहीं जीवन में कितनी बड़ी-बड़ी बातें करता रहा।

मेरा यह अंजाम तो होना ही था!