जिंदा मुर्दा लोगों का पत्थर देख मुझे भी पूजा कि कामना हुई, मैंने भी ढूंढा एक पत्थर जो बेजुबान मूरत हुई, सजाया इस कदर की पूरी फुलवारी भी मूर्छित हुई, वो आस्था में चूर किसी और कि मन्नत पूरी हुई। मैं नास्तिक था जो कभी शीश नहीं झुकाता था, अब पांच वक़्त नमाज़ के परे भी मस्तक नहीं उठता हूं, तब मैं अंजान था कि लोगों का अहम कैसे टूट जाता था, अब तो मुर्दा ख्वाहिशें लिए भी दफ़न रहता हूं। लोग अक्सर कहते है कि हम अब मुस्कुराते नहीं है, कैसे समझाएं की मातम में खुश हुआ नहीं जाता है, मेरे अंदर के उस बचपन का कतल हो गया है, और अब दिल खोल कर जिया नहीं जाता है। बेजान सा जिए जा रहे है लोगो को खुश रखने के लिए, और मेरे मन कि सांसों पर दबाव बढ़ने लगा है, अब तो लगता है कि धड़कन भी चुप है अपने लिए, सांसों की जगह जिम्मेदारियों ने जिंदा रखा है। किसने कहा कि का हौसला अपनों के बीच नहीं टूटता, और अगर अपने साथ हो तो कोई गैर नहीं रूठता, मैं वो हूं जो अपनों के बीच जिंदा मुर्दा हूं, ऐ जिंदगी तेरे हर बर्ताव पर मैं शर्मिंदा हूं। जिंदा मुर्दा #yqdidi #yqbaba #yqtales #yqquotes #yqwriters #yqbhashkar #yqjindagi