कविता के तो छंद और नियम हैँ. लेकिन प्रेम बिलकुल निश्छंद हैँ याने छंद हीन प्रेम कहाँ शुरु होता कहाँ इसका अंत होता हैँ कुछ पाता नहीं इसकी कोई मात्रा भी नहीं और न ही कोई ठिकाना हैँ प्रेम क़ो बनाने और सीखने का भी कोई उपाय नहीं हैँ प्रेम की बात हम चौबिसो घंटे करते हैँ और अगर कोई पूछ ले क़ि ये प्रेम क्या हैँ? तो जवाब मिलता हैँ "हमेँ मालूम नहीं" ©Parasram Arora हमेँ मालूम नहीं...... #mask