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जिन उंगलियों से चुनने थे मुझे अक्षत आराधना के ,

जिन उंगलियों से चुनने थे मुझे 
अक्षत आराधना के , 
उन उंगलियों पर आ जमा है  स्पर्श तुम्हारा ..
ओस सा ..! 

सूर्य उदय होते ही जो (ओस)  हवा हो जायेगा ..
हाय! कैसा उपहास है प्रेम का! 

मेरी अंजुरी रही पर्याप्त पंचामृत अभिषेक के लिए , 
परंतु नहीं समाहित हुए उनमें -
साधना का मौन ,
प्रार्थनाओं की दीर्घता ,
समर्पण की उदारता ! 


जो दिख रहा है जीवन सा : क्षणभंगुर ओस ..

प्रेम के अर्थ से मीलों दूर खड़ा निष्ठुर जीवन भी 
काश ! 
हो जाता क्षण भर का ।

मीनाक्षी

©Meenakshi 
  #srijanaatma