आओ कभी पागलो की बस्ती में रहते है हम यहाँ अपनी ही मस्ती में कोई हैं यहाँ जबरस्ती में तो कोई है अपनों की ख़ुदपरस्ती मैं कोई गीत मधुर गाता है कोई सर से थाली बजाता है कोई छोटी बात पर चिढ़ जाता है कोई इशारों में समझाता है कोई बिना बात मुसकाता है कोई लफ्ज़ ना एक सुनता है कोई दीवारों से भिड़ जाता है कोई दरवाजे से टकराता है कोई लैला लैला चिल्लाता है ख़ुद को मजनूं कहलवाता है कभी मुझसे लिपट जाता है फिर अपना हाल सुनाता है आओ कभी पागलो की बस्ती में देखो कैसे रहते हम अपनी ही मस्ती में सुनो बात हमारी सस्ती में बैठकर ना आना बस इश्क़ वालो की कश्ती में वरना रह जाओगे हमेशा पागलो वाली बस्ती में