शाख़ से पतझर में पत्ते संबंध तोड़ लेते हैं, जमीं बिछाकर सो जाते आकाश ओढ़ लेते हैं, पेड़ो को भी इंतज़ार रहता बसंत आने तक, रिश्तों के नव कोंपल आकर प्रेम जोड़ लेते हैं, पल-पल साथ निभाता आता-जाता देह सदन में, करता है संचार प्राण मुख सकल मोड़ लेते हैं, सिर्फ ज़रूरत से चलते व्यवहार जगत के 'गुंजन', बुद्धिमान इस अवसर में ख़ुशियाँ बटोर लेते हैं, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #ओढ़ लेते हैं#