निमंत्रण और आग्रह भरी उन नज़रो की उपेक्षा करना मेरे बस मे नही था और आज इसीलिए जिंदगी मे मस्ती और मदहोशी का आलम है भरोसे और प्रेम का गुदगुदाता हुआ वो प्रीत का मंत्र जीवन मे सुरम्य छंदो की बोँछार कर गया है तभी ये जिंदगी काव्य की परिक्रमा करते करते कविता बनने लगी है ©Parasram Arora काव्य की परिक्रमा