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हमरी प्रेम कहानी भाग 3 ******************** शाम को

हमरी प्रेम कहानी भाग 3
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शाम को झटपट नदी किनारे निकल लिए।आज सोच लिए थे उका नाम भी पूछ लेंगे। उ ठीक टाइम पे पानी भरे आ गई। हम तनिक इधर-उधर देख के हाथ हिलाए। कउनो जबाब नहीं मिला। फिर वही कांड किये एगो ढेला उठा उसके तरफ फेकें।
उधर से चाँद सा मुखरा उठा और उ हमरी तरफ देख के हाथ से "क्या" में इशारा की।
हम आश्वस्त होके झट से पूछ लिए।अरे....तुमरा नाम क्या है?
आवाज आई....सरोज। फिर उधर से प्रश्न....तुम का कर रहे हो घाट पे....?
हम सकपका के बोल दिए "बस तुमका देखने आए थे
वो झेंप गई। फिर बोली देख लिए ना। अब का है?
हम हाथ से दिल का फोटो बना उका दिखाए। उ पहिले आजू-बाजू देखने लगी फिर झट से चुम्मी का इशारा कर दी।
सच कहे, हम एकदम से धड़ाम हो गए। फिर होश संभाला के अपन छाती पे हाथ रख धड़कन का इशारा किये। ई बार उसकी सहेली दूसरी तरफ देखने लगी।
हमरा प्रेम का गाड़ी चल पड़ा। दू किनारे रह कर भी आत्मा जुड़ने लगा। हम दोनों को शायद पहिला प्रेम का एहसास मिला था। दूरे दूर लेकिन एक साथ धड़कने लगे हमलोग
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महीना दू महीना हमदोनो का प्रेम ऐसे ही चला। नजे हम उ पट्टी  जा पाते थे ना उ कबहु ई पट्टी आई। लेकिन प्रेम का गाछ फलने फूलने लगा था। 
एक दिन हम सोचे काहे नही चिट्टी लिख के उका अपना सारा हाल बताएं। पर साधारण चिट्टी भी क्या चिट्ठी? सो अंगूठा ब्लेड से चीड़ के खून बहाए और लिख दिए चिट्ठी....
हमरी जान से प्यारी
सरोज (लाडो)
चरण वंदन
का कहे तुमरे बिन कैसे कटता है दिन रात। एक एक पल साल जैसा लगता है। ससुरी हमको तैरना नहीं आता नहीं त रोज हेल के तुमसे मिलने आ जाते। नाव वाले सब का भड़ोसा नही, ना समय पे कोई मिलता है। आजकल त उ पट्टी जाने का भी 6 टका लेने लगा है। तुमरा बाबूजी से डर लगता है। उनका मूंछ यमराज जैसा है ऊपर से सुने गुंडा सब के साथ उठते-बैठते है। हम गुरुजी परिवार से हैं। आज तक चकुओं नही देखे हैं। कभी अगर उनके नजर में आ गए त उ त सीधे हमको भट्ठी में फेंकवा देंगे। इधर लइका सब भी छिछोड़ा है। सब से नजर बचा के तुमको देखने घाट वे आते हैं। एको लड़का के नजर में आ गए त पूरा गांव में ढिंढोरा पीट देगा। हमर बाबूजी भी कम चंडाल नही है।उनका पता चल गया त MSc मैथमेटिक्स करके बेरोजगार रहे का सब भड़ास हमरे पे निकाल देंगे। उनको हमसे बहुते उम्मीद है। inter का पहिला साल है और उ चाहते हैं कि हम फर्स्ट क्लास होए। 
जानती हो हम किताब खोलते हैं त हमको कुछो बुझाता ही नही। बस पीठ पर उसर रगड़ते तुम्ही दिखती हो। तुमरा हाथ सब कितना गोरा-गोरा है। कल हमहू एक बाल्टी उसर मिट्टी किनारे से उठा लाए है। आज एकबार मुँह पे रगड़े भी। भक्क-भक्क साफ हो गया। बहुते कमाल का चीज है ई।
आजकल नीनो (नींद) नही आता है। चाँद को देखते है त तुमरे चेहरा जैसा गोल मटोल बुझाता है।
तुम कितना सुनदर हो न,प्राण दे देंगे पर तुमरे साथ ही जियेंगे।
अब हम झुंड में घाटो पे जाना छोड़ दिये है। सब लइका सब पापी है।कुछो बोलता है उल्टा सीधा त खून खौल जाता है। कल त मन मे बिचार आया था कि लुखड़ा को जहर दे देंगे।
अब से ना,घाट पे आने का टाइम थोड़ा बदल लो। 10 बजे के बाद आओ तब सबे चला जाता है नहा के। शाम को भी न 3-बजे तक आ जाओ काहे की 5 बजके के बाद गांव के लोग सब टट्टी फिरे उधरे जाता है। टट्टी से ज्यादा राजनीति करता है उधर बैठ के।
ई छोटा पन्ना में दिल का सबे बात नही लिख सकते हैं। पहिला प्रेम पत्र है। अपन खून से लिखे हैं। बहुते दरद किया अंगूठा चिड़े में। 
आज गणपत अपन नाव से उ पट्टी जा रहा त हम उसको ई चिट्टी दे देंगे। पढ़ के फाड़ देना।किसी के हाथ लग गया त बबाल हो जाएगा। अब जब भी गणपत उ पट्टी जाएगा हम तुमको रेगुलर चिट्टी लिखेंगे। ई अपने बटेदार का बेटा है।कोउ दिक्कत नही, भड़ोसा कर सकती हो। हमरा से कितना बार उधार लिया है गांजा पिये के लिए।
देखो तुम जिनगी भर अपना दया दृष्टि हमरे पे बनाए रखना। अगर पढ़-लिख के सरकारी नौकरी हो गया ना त स्वस्थ और खुशहाल परिवार बसाएंगे। 5-6 बाल बच्चा सहित खूब शान से जिएंगे। कभी कभी हम सोचते हैं कि जब तुम साड़ी पहनोगी न त एकदम दुर्गा मैय्या जैसी दिखोगी। बहुते अच्छा जिनगी बिताएंगे हमलोग।
चलो आज ही केतना बात लिख दे। तुमको प्रणाम लिखते हैं और बहुते प्यार। 

तुमरा हीरो
दिलखुश 
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घाट पे नजर गणपत को ढूंढने लगी। 10 मिनट बाद गणपत लग्गा से नाव ठेलते हुए किनारे लगा। हम झट से 5 रुपैया और खूब टाइट पैक किया हुआ चिट्टी (होमियोपैथ के दवाई के एगो छोटका डिब्बा में) उका पकड़ा दिए। फिर एकदम से एहतियात के तौर पे बोले"देख गणपत तुम हमरे उमर का है। तोरा बाबूजी 15 साल से हमर बटेदार है और हम कितनी बार तुमको पैसा दिए हैं। ई डब्बा भोगिन्दर जी के बेटी का दवाई है। किसी के हाथ मे मत दे देना। उ सरोज है ना उनकी छोटी बेटी बस उसको ही देना। अगर उ आज नही मिले त जब मिले देना बस उसी के हाथ
गणपत बोला"आप टेंशन काहे लेते हैं मालिक,हम बुड़बक थोड़े हूँ किसी को पकड़ा देंगे। जब इतना गुप्त दवाई है त उ छोटकी मालकिन के ही पकड़ाएंगे। आज नहियो भेटाइ त हम त रोज ई पट्टी, उ पट्टी आते जाते रहते है माछ बेचे,जब भेटाएगी उका ही देंगे। हम मन ही मन उसके बफादारी से खुश हुए।
वो लग्गा ठेल नाव आगे बढ़ाया। नाव हमशे जितनी दूर जा रहा था हमरा धड़कन उतना तेज हुआ जा रहा था। 10 मिनट में गणपत उ पट्टी लग गया,फिर नाव से मछरी का देगची कपार पे रख गांव के तरफ बढ़ गया।
हम कुछ देर मौन हो हुएं खड़े रहे फिर आशंका और खुशी दोनों समेट घर को वापस चल दिये।
अभी मन्दिर स्थान पहुंचे ही थे कि लहटन चच्चा भेटा गए। हम शिष्टाचार बस बोले"प्रणाम चा"
लहटन चा-का रे बालक,पढ़ाई लिखाई चल रहा है न। बहुते खराब स्थिति हुआ जा रहा शिक्षा दीक्षा का। आज का पेपर पढ़े हो। उ पट्टी के बच्चों में शिक्षा दर केतना कम है। एको स्कूल नहीं है। लइकन सब त ई पट्टी भी स्कूल आ जाता है पर लईकी सब 4-5 क्लास के बाद नहीं पढ़ पाती। ई कोसिकी पे एगो पुल बनाने का योजना को मंजूरी मिला है। ताकि उ पट्टी के सब बच्चा लोग शिक्षा से लाभान्वित हो।
हमरा दिमाग "पुल के योजना के मंजूरी पर चिपक गया"
हड़बड़ा के पूछ दिए"चच्चा केतना दिन में पुल बन जाएगा? फिर त सब ई पट्टी,उ पट्टी आराम से जा सकेगा ना? 
लहटन चा-अरे सरकारी योजना है। आज 20 साल से त हमहू सुन रहे। ई घुसखोरवन सब बनावे तब ना। सब खेत खलिहान उहे पट्टी है। बाग बगीचा सब बिना देखरेख के रहे वाला चीज है। नाव से केतना पार लगेगा जोगना? लेकिन ई बार DM साब इसको लेके सिरियस है। एक दो साल में बनिये जाएगा। नेतवन सब के वोटो त चाहिए। ऊपर से अपन निर्मल बाबू ई मुद्दा बना के रणक्षेत्र में उतर गए है त शायद ई बार पक्का।
झट फिर से प्रणाम किये और सनसनाते मन से विदा हुए। मन मे दर्जन भर मोर नाचने लगा था.....पुल बन जाएगा त रोज सरोजा से मिलेंगे.......उ पढ़ने भी त इहे पट्टी आएगी......फिर त उ पट्टी 20 मिनट में पहुंच जाएंगे....सारा बाजार भी त इहे पट्टी है,उ समान लेने भी त आएगी ही.....फिर त चिट्ठियों लिखे का जरूरत नही परेगा, कितना जोखिम है इसको भेजना......हमरा प्रेम लकी है.......अमर है......सच्चा है......भगवान को हमरा दर्द मालूम है और भी तरह तरह की बातें।
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ले दे के 6 महीना ऐसे ही ताका-झांकी,चिट्ठी लिखवे और घाट पे जाने में बीत गया। एक दिन जब घाट किनारे गए तो देखा 5-7 आदमी यंत्र एक पानी मे क्या-क्या न कर रहा था। बड़ा अजीब लगा नाव पे सवार ये लोग पानी मे एगो कोई मशीन डाल गहराई नाप रहे थे। एक बन्दा पेपर पे कुछ लिखे जा रहा था। घाट किनारे एक कार लगी थी जिसपे और भी यंत्र रखे थे।
माथा ठनका लगता है जरूर पुल वाला काम शुरू होवे वाला है। बड़ी उत्सुकता से उन सब का किनारे आने का इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर में उ नाव किनारे आने लगा। जैसे ही किनारे लगा,हम झट से एगो आदमी से पूछे "का सर अबकी पुल बन जाएगा का। 
उ पगला जैसी आंखों से हमका देखने लगा। फिर बोला "ई का तुमको दो दिन का खेल बुझाता है,अभी नाप जोख हो रहा,फिर इंजीनिअर पास करेगा,फिर बजट बनेगा,फिर BDO साब approve करेंगे तब DM साब टेंडर निकालेंगे फिर एकाध महीना पैसा release होने में लगेगा,तब ना पुल! कुल मिला के डेढ़ दू साल।
मन मे आया खींच के दू लात मार और काहे "चल काल से पुल बनाना शुरू कर" पर हतोत्साहित हो चुप रह गए।
सब चला गया। हूं बैठ के सोच रहे थे अभी सरोज 15-16 साल की है।पुल बनते बनते 18 साल की हो जाएगी। फिर उसका शादी का बात होने लगेगा। क्या पता कोई लड़का उका जंच जाए। या फिर घर के कहने पे उ दूसरे से शादी का हाँ कह दे। नहीं.... नहीं...... पुल बनेगा.... हम बनाऊंगा पुल सरोज के लिये। उसके बिना जीना कैसा? 
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गांव में यज्ञ हो रहा था। 10 दिन का प्रोग्राम था। सब सुबह सुबह प्रवचन और यज्ञ में चढ़ावा देने जाते थे। मथुरा से पंडित जी आए रहे। काफी नाम था उनका। राम लीला और कृष्ण लीला में उनके जोडी का कोई न था उस समय आज आठवां आहुति था तो हम भी नहा धो के सवा रुपिया,अक्षत और होम लेके पहुंच गए हवन करने। शामियाने में बैठने की जगह न थी। हमने झटपट हवन किया और बैठ गए प्रवचन सुनने।
पंडित ने कहना शुरू किया"जैसा आप लोग अब तक सुने कृष्ण के आत्मा में राधा बसती थी।वो रुक्मिणी के हो तो गए पर सदैव राधा उनके सन्मुख रहती थी। वो गोकुल छोड़ के चले गए पर गोकुल के कण-कण में उनका वास् था और राधा उसी सुवास के साथ कृष्ण प्रेम में सदा विलीन रही। रुक्मिणी भी तो राधा की ही अंश थी। और कृष्णा भी राधा और रुक्मिणी को एक ही मानते थे। भले शरीर अलग हो जाए मगर सच्चा और निश्चल प्रेम आत्मा के साथ ही बिलग होता है।
पता नही क्यों आंखे डबडबाने लगी। मैं और सरोज भी तो राधा-कृष्ण सा ही प्रेम में उतरे हैं।वो भी तो आत्मा से दूर विरह वेदना सहती है। ये कोसिकी भी तो हमे गोकुल-मथुरा की तरह अलग किये हुए है। पर मैं किस रुक्मिणी में राधा ढूंढूं?
पहले सुबक के रोया फिर भमोडा फार के बिलखने लगा
उ त लहटनियां चाची की नजर हमपे पड़ गई वरना उस रोने से कांड ही हुआ जा रहा था।
वो बूढ़ी चाची पास आके बोली "का हुआ मेरा बच्चा को,काहे बिलखने लगे प्रवचन सुन के,कुछ हुआ का तुमको।
हम उका छाती से लगके बस हिचक-हिचक के एतना ही बोल पाए"ए चाची हमहू कृष्ण हो गए....अब नही जी पाएंगे....हमका उ से मिलना है....हमरा उका सिवा कोउ नही है संसार मे।
वो हमको थपथपा के ढाढस बंधाने लगी।इतने में दू चार और महिला घटना देखने आ खड़ी हुई।
थोड़ा सांस आया तो स्थिति भांप हम घबरा गए।  नाक पोछते उठ खड़े हुए। मने मन प्रवचन देने वाले को चार गाली दिए"ससुरी कांडे करवा देता आज त" चाची का पांव छुए और निकल गए हुआँ से।
*************************************** #हमरी प्रेम कहानी भाग 3
#ganesha
हमरी प्रेम कहानी भाग 3
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शाम को झटपट नदी किनारे निकल लिए।आज सोच लिए थे उका नाम भी पूछ लेंगे। उ ठीक टाइम पे पानी भरे आ गई। हम तनिक इधर-उधर देख के हाथ हिलाए। कउनो जबाब नहीं मिला। फिर वही कांड किये एगो ढेला उठा उसके तरफ फेकें।
उधर से चाँद सा मुखरा उठा और उ हमरी तरफ देख के हाथ से "क्या" में इशारा की।
हम आश्वस्त होके झट से पूछ लिए।अरे....तुमरा नाम क्या है?
आवाज आई....सरोज। फिर उधर से प्रश्न....तुम का कर रहे हो घाट पे....?
हम सकपका के बोल दिए "बस तुमका देखने आए थे
वो झेंप गई। फिर बोली देख लिए ना। अब का है?
हम हाथ से दिल का फोटो बना उका दिखाए। उ पहिले आजू-बाजू देखने लगी फिर झट से चुम्मी का इशारा कर दी।
सच कहे, हम एकदम से धड़ाम हो गए। फिर होश संभाला के अपन छाती पे हाथ रख धड़कन का इशारा किये। ई बार उसकी सहेली दूसरी तरफ देखने लगी।
हमरा प्रेम का गाड़ी चल पड़ा। दू किनारे रह कर भी आत्मा जुड़ने लगा। हम दोनों को शायद पहिला प्रेम का एहसास मिला था। दूरे दूर लेकिन एक साथ धड़कने लगे हमलोग
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महीना दू महीना हमदोनो का प्रेम ऐसे ही चला। नजे हम उ पट्टी  जा पाते थे ना उ कबहु ई पट्टी आई। लेकिन प्रेम का गाछ फलने फूलने लगा था। 
एक दिन हम सोचे काहे नही चिट्टी लिख के उका अपना सारा हाल बताएं। पर साधारण चिट्टी भी क्या चिट्ठी? सो अंगूठा ब्लेड से चीड़ के खून बहाए और लिख दिए चिट्ठी....
हमरी जान से प्यारी
सरोज (लाडो)
चरण वंदन
का कहे तुमरे बिन कैसे कटता है दिन रात। एक एक पल साल जैसा लगता है। ससुरी हमको तैरना नहीं आता नहीं त रोज हेल के तुमसे मिलने आ जाते। नाव वाले सब का भड़ोसा नही, ना समय पे कोई मिलता है। आजकल त उ पट्टी जाने का भी 6 टका लेने लगा है। तुमरा बाबूजी से डर लगता है। उनका मूंछ यमराज जैसा है ऊपर से सुने गुंडा सब के साथ उठते-बैठते है। हम गुरुजी परिवार से हैं। आज तक चकुओं नही देखे हैं। कभी अगर उनके नजर में आ गए त उ त सीधे हमको भट्ठी में फेंकवा देंगे। इधर लइका सब भी छिछोड़ा है। सब से नजर बचा के तुमको देखने घाट वे आते हैं। एको लड़का के नजर में आ गए त पूरा गांव में ढिंढोरा पीट देगा। हमर बाबूजी भी कम चंडाल नही है।उनका पता चल गया त MSc मैथमेटिक्स करके बेरोजगार रहे का सब भड़ास हमरे पे निकाल देंगे। उनको हमसे बहुते उम्मीद है। inter का पहिला साल है और उ चाहते हैं कि हम फर्स्ट क्लास होए। 
जानती हो हम किताब खोलते हैं त हमको कुछो बुझाता ही नही। बस पीठ पर उसर रगड़ते तुम्ही दिखती हो। तुमरा हाथ सब कितना गोरा-गोरा है। कल हमहू एक बाल्टी उसर मिट्टी किनारे से उठा लाए है। आज एकबार मुँह पे रगड़े भी। भक्क-भक्क साफ हो गया। बहुते कमाल का चीज है ई।
आजकल नीनो (नींद) नही आता है। चाँद को देखते है त तुमरे चेहरा जैसा गोल मटोल बुझाता है।
तुम कितना सुनदर हो न,प्राण दे देंगे पर तुमरे साथ ही जियेंगे।
अब हम झुंड में घाटो पे जाना छोड़ दिये है। सब लइका सब पापी है।कुछो बोलता है उल्टा सीधा त खून खौल जाता है। कल त मन मे बिचार आया था कि लुखड़ा को जहर दे देंगे।
अब से ना,घाट पे आने का टाइम थोड़ा बदल लो। 10 बजे के बाद आओ तब सबे चला जाता है नहा के। शाम को भी न 3-बजे तक आ जाओ काहे की 5 बजके के बाद गांव के लोग सब टट्टी फिरे उधरे जाता है। टट्टी से ज्यादा राजनीति करता है उधर बैठ के।
ई छोटा पन्ना में दिल का सबे बात नही लिख सकते हैं। पहिला प्रेम पत्र है। अपन खून से लिखे हैं। बहुते दरद किया अंगूठा चिड़े में। 
आज गणपत अपन नाव से उ पट्टी जा रहा त हम उसको ई चिट्टी दे देंगे। पढ़ के फाड़ देना।किसी के हाथ लग गया त बबाल हो जाएगा। अब जब भी गणपत उ पट्टी जाएगा हम तुमको रेगुलर चिट्टी लिखेंगे। ई अपने बटेदार का बेटा है।कोउ दिक्कत नही, भड़ोसा कर सकती हो। हमरा से कितना बार उधार लिया है गांजा पिये के लिए।
देखो तुम जिनगी भर अपना दया दृष्टि हमरे पे बनाए रखना। अगर पढ़-लिख के सरकारी नौकरी हो गया ना त स्वस्थ और खुशहाल परिवार बसाएंगे। 5-6 बाल बच्चा सहित खूब शान से जिएंगे। कभी कभी हम सोचते हैं कि जब तुम साड़ी पहनोगी न त एकदम दुर्गा मैय्या जैसी दिखोगी। बहुते अच्छा जिनगी बिताएंगे हमलोग।
चलो आज ही केतना बात लिख दे। तुमको प्रणाम लिखते हैं और बहुते प्यार। 

तुमरा हीरो
दिलखुश 
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घाट पे नजर गणपत को ढूंढने लगी। 10 मिनट बाद गणपत लग्गा से नाव ठेलते हुए किनारे लगा। हम झट से 5 रुपैया और खूब टाइट पैक किया हुआ चिट्टी (होमियोपैथ के दवाई के एगो छोटका डिब्बा में) उका पकड़ा दिए। फिर एकदम से एहतियात के तौर पे बोले"देख गणपत तुम हमरे उमर का है। तोरा बाबूजी 15 साल से हमर बटेदार है और हम कितनी बार तुमको पैसा दिए हैं। ई डब्बा भोगिन्दर जी के बेटी का दवाई है। किसी के हाथ मे मत दे देना। उ सरोज है ना उनकी छोटी बेटी बस उसको ही देना। अगर उ आज नही मिले त जब मिले देना बस उसी के हाथ
गणपत बोला"आप टेंशन काहे लेते हैं मालिक,हम बुड़बक थोड़े हूँ किसी को पकड़ा देंगे। जब इतना गुप्त दवाई है त उ छोटकी मालकिन के ही पकड़ाएंगे। आज नहियो भेटाइ त हम त रोज ई पट्टी, उ पट्टी आते जाते रहते है माछ बेचे,जब भेटाएगी उका ही देंगे। हम मन ही मन उसके बफादारी से खुश हुए।
वो लग्गा ठेल नाव आगे बढ़ाया। नाव हमशे जितनी दूर जा रहा था हमरा धड़कन उतना तेज हुआ जा रहा था। 10 मिनट में गणपत उ पट्टी लग गया,फिर नाव से मछरी का देगची कपार पे रख गांव के तरफ बढ़ गया।
हम कुछ देर मौन हो हुएं खड़े रहे फिर आशंका और खुशी दोनों समेट घर को वापस चल दिये।
अभी मन्दिर स्थान पहुंचे ही थे कि लहटन चच्चा भेटा गए। हम शिष्टाचार बस बोले"प्रणाम चा"
लहटन चा-का रे बालक,पढ़ाई लिखाई चल रहा है न। बहुते खराब स्थिति हुआ जा रहा शिक्षा दीक्षा का। आज का पेपर पढ़े हो। उ पट्टी के बच्चों में शिक्षा दर केतना कम है। एको स्कूल नहीं है। लइकन सब त ई पट्टी भी स्कूल आ जाता है पर लईकी सब 4-5 क्लास के बाद नहीं पढ़ पाती। ई कोसिकी पे एगो पुल बनाने का योजना को मंजूरी मिला है। ताकि उ पट्टी के सब बच्चा लोग शिक्षा से लाभान्वित हो।
हमरा दिमाग "पुल के योजना के मंजूरी पर चिपक गया"
हड़बड़ा के पूछ दिए"चच्चा केतना दिन में पुल बन जाएगा? फिर त सब ई पट्टी,उ पट्टी आराम से जा सकेगा ना? 
लहटन चा-अरे सरकारी योजना है। आज 20 साल से त हमहू सुन रहे। ई घुसखोरवन सब बनावे तब ना। सब खेत खलिहान उहे पट्टी है। बाग बगीचा सब बिना देखरेख के रहे वाला चीज है। नाव से केतना पार लगेगा जोगना? लेकिन ई बार DM साब इसको लेके सिरियस है। एक दो साल में बनिये जाएगा। नेतवन सब के वोटो त चाहिए। ऊपर से अपन निर्मल बाबू ई मुद्दा बना के रणक्षेत्र में उतर गए है त शायद ई बार पक्का।
झट फिर से प्रणाम किये और सनसनाते मन से विदा हुए। मन मे दर्जन भर मोर नाचने लगा था.....पुल बन जाएगा त रोज सरोजा से मिलेंगे.......उ पढ़ने भी त इहे पट्टी आएगी......फिर त उ पट्टी 20 मिनट में पहुंच जाएंगे....सारा बाजार भी त इहे पट्टी है,उ समान लेने भी त आएगी ही.....फिर त चिट्ठियों लिखे का जरूरत नही परेगा, कितना जोखिम है इसको भेजना......हमरा प्रेम लकी है.......अमर है......सच्चा है......भगवान को हमरा दर्द मालूम है और भी तरह तरह की बातें।
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ले दे के 6 महीना ऐसे ही ताका-झांकी,चिट्ठी लिखवे और घाट पे जाने में बीत गया। एक दिन जब घाट किनारे गए तो देखा 5-7 आदमी यंत्र एक पानी मे क्या-क्या न कर रहा था। बड़ा अजीब लगा नाव पे सवार ये लोग पानी मे एगो कोई मशीन डाल गहराई नाप रहे थे। एक बन्दा पेपर पे कुछ लिखे जा रहा था। घाट किनारे एक कार लगी थी जिसपे और भी यंत्र रखे थे।
माथा ठनका लगता है जरूर पुल वाला काम शुरू होवे वाला है। बड़ी उत्सुकता से उन सब का किनारे आने का इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर में उ नाव किनारे आने लगा। जैसे ही किनारे लगा,हम झट से एगो आदमी से पूछे "का सर अबकी पुल बन जाएगा का। 
उ पगला जैसी आंखों से हमका देखने लगा। फिर बोला "ई का तुमको दो दिन का खेल बुझाता है,अभी नाप जोख हो रहा,फिर इंजीनिअर पास करेगा,फिर बजट बनेगा,फिर BDO साब approve करेंगे तब DM साब टेंडर निकालेंगे फिर एकाध महीना पैसा release होने में लगेगा,तब ना पुल! कुल मिला के डेढ़ दू साल।
मन मे आया खींच के दू लात मार और काहे "चल काल से पुल बनाना शुरू कर" पर हतोत्साहित हो चुप रह गए।
सब चला गया। हूं बैठ के सोच रहे थे अभी सरोज 15-16 साल की है।पुल बनते बनते 18 साल की हो जाएगी। फिर उसका शादी का बात होने लगेगा। क्या पता कोई लड़का उका जंच जाए। या फिर घर के कहने पे उ दूसरे से शादी का हाँ कह दे। नहीं.... नहीं...... पुल बनेगा.... हम बनाऊंगा पुल सरोज के लिये। उसके बिना जीना कैसा? 
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गांव में यज्ञ हो रहा था। 10 दिन का प्रोग्राम था। सब सुबह सुबह प्रवचन और यज्ञ में चढ़ावा देने जाते थे। मथुरा से पंडित जी आए रहे। काफी नाम था उनका। राम लीला और कृष्ण लीला में उनके जोडी का कोई न था उस समय आज आठवां आहुति था तो हम भी नहा धो के सवा रुपिया,अक्षत और होम लेके पहुंच गए हवन करने। शामियाने में बैठने की जगह न थी। हमने झटपट हवन किया और बैठ गए प्रवचन सुनने।
पंडित ने कहना शुरू किया"जैसा आप लोग अब तक सुने कृष्ण के आत्मा में राधा बसती थी।वो रुक्मिणी के हो तो गए पर सदैव राधा उनके सन्मुख रहती थी। वो गोकुल छोड़ के चले गए पर गोकुल के कण-कण में उनका वास् था और राधा उसी सुवास के साथ कृष्ण प्रेम में सदा विलीन रही। रुक्मिणी भी तो राधा की ही अंश थी। और कृष्णा भी राधा और रुक्मिणी को एक ही मानते थे। भले शरीर अलग हो जाए मगर सच्चा और निश्चल प्रेम आत्मा के साथ ही बिलग होता है।
पता नही क्यों आंखे डबडबाने लगी। मैं और सरोज भी तो राधा-कृष्ण सा ही प्रेम में उतरे हैं।वो भी तो आत्मा से दूर विरह वेदना सहती है। ये कोसिकी भी तो हमे गोकुल-मथुरा की तरह अलग किये हुए है। पर मैं किस रुक्मिणी में राधा ढूंढूं?
पहले सुबक के रोया फिर भमोडा फार के बिलखने लगा
उ त लहटनियां चाची की नजर हमपे पड़ गई वरना उस रोने से कांड ही हुआ जा रहा था।
वो बूढ़ी चाची पास आके बोली "का हुआ मेरा बच्चा को,काहे बिलखने लगे प्रवचन सुन के,कुछ हुआ का तुमको।
हम उका छाती से लगके बस हिचक-हिचक के एतना ही बोल पाए"ए चाची हमहू कृष्ण हो गए....अब नही जी पाएंगे....हमका उ से मिलना है....हमरा उका सिवा कोउ नही है संसार मे।
वो हमको थपथपा के ढाढस बंधाने लगी।इतने में दू चार और महिला घटना देखने आ खड़ी हुई।
थोड़ा सांस आया तो स्थिति भांप हम घबरा गए।  नाक पोछते उठ खड़े हुए। मने मन प्रवचन देने वाले को चार गाली दिए"ससुरी कांडे करवा देता आज त" चाची का पांव छुए और निकल गए हुआँ से।
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#ganesha