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सब्बो जो मिली थी ट्रेन में मिली थी पहली बार एक इत्

सब्बो जो मिली थी ट्रेन में मिली थी
पहली बार एक इत्तेफाक था
की उसे पूरे बोगी में मेरी पास वाली
ही सीट मिली थी
उसका रंग सांवला सा था
सांवला भी नही काली ही थी
उसपे पगली ने काजल लगा रखी थी
एक बार क्या मिली जहा तहां मिल जाती
कभी बस में तो कभी घोड़ा गाड़ी
अब तो हद हो गयी मेले में भी मिल गयी
मैंने भी ये काली कलूटी लगती पीछे पड़ गयी
मैं भागता रहा और वो मिलती रही
एक दिन उसने कह ही दिया
तुम मूझे अच्छे लगते हो
मैं क्या करता मुझे अच्छा लगता तब तो
आखिर कर पिंड छूट ही गया
लेकिन सालो बाद फिर उसी की कहानी दोस्तो
को सुनाता हूँ क्यों जानते हो
कोई दूसरी वैसी मिली नही
जिसने आगे आकर कहा हो कि
उसे मुझसे प्यार हो गया हैं
मेरे दूर भगने पर भी करीब आयी हो
ये कोई और नही थी
ये निर्मल वर्मा कि बिट्टो छुट्टी वाली
मेरी मेरी ट्रेन वाली सब्बो थी
असली नाम सावित्री 
जिसे भूलना सभव नही था लिख डाला।

©ranjit Kumar rathour
  मेरी ट्रेन वाली सब्बो
#निर्मल वर्मा की बिट्टो जैसी
#poetry month

मेरी ट्रेन वाली सब्बो #निर्मल वर्मा की बिट्टो जैसी poetry month #कविता

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