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बालमन था मेरा बड़ा सयाना, खुशियों का मैंने, एक अलग

बालमन था मेरा बड़ा सयाना,
खुशियों का मैंने,
एक अलग ही था..पैमाना अपनाया,
गाँव मेरे..एक खिलौने वाला आया जब,
टोकरी भर..खुशियाँ बेचने को
रंग-बिरंगे खिलौने संग अपने ले आया वो,
सिसकती आँखों में..कुछ सपने बुनने को,
अलसाते चेहरों पर रौनक बिखेरने को,
पैसे जो न थे..मेरे हाथ,
सिसक रहा था,
खड़ा मै माँ के पास,
माँ डाँटेगी बहुत,
मुझको..फिर से आज,
मैने..जिद जो कि थी
खुशियाँ खरीदने की आज,
नाही डाँटा..नाही मारा,
माँ ने मुझे समझाया,
प्यार से गले लगाया,
हाथ फिरा कर माथे पर,
स्नेह वत्सलता से..मुझे बताया,
खुशियाँ नहीं वो,
जो खरीदी जा सके चंद सिक्कों से,
खुशियाँ नहीं वो जो बिकती मिले,
हाट-बाजारों में,
खुशियाँ तो वो हैं,
जो भर दे पेट हमारा,
 हर सुबह और हर शाम को, #मेरी_कल्पना...
मेरे उस बालमन की दृष्टि से मेरे लिए खुशियाँ वो सही थीं... या
माँ की जिम्मेदारियों की दृष्टि से खुशियों का  सही अर्थ वो दो वक्त का भोजन था...

मेरी व्यक्तिगत दृष्टि से तो भोजन ही सही मायने में असल खुशियाँ थीं..
आज भी दुनियाँ मे बहुत से ऐसे लोग हैं.. जिन्हें आसानी से हर रोज भोजन नहीं मिल पाता.. आज खाते हैं तो कल के लिए सोचते हैं और दुआ करते हैं.. कि कल भी भोजन उपलब्ध हो जाये.. और उसके घर कोई भूखा न रहे...
एक माँ की दशा क्या होती होगी जब बच्चे उसके भूखे उसके सामने सो जायें..
बालमन था मेरा बड़ा सयाना,
खुशियों का मैंने,
एक अलग ही था..पैमाना अपनाया,
गाँव मेरे..एक खिलौने वाला आया जब,
टोकरी भर..खुशियाँ बेचने को
रंग-बिरंगे खिलौने संग अपने ले आया वो,
सिसकती आँखों में..कुछ सपने बुनने को,
अलसाते चेहरों पर रौनक बिखेरने को,
पैसे जो न थे..मेरे हाथ,
सिसक रहा था,
खड़ा मै माँ के पास,
माँ डाँटेगी बहुत,
मुझको..फिर से आज,
मैने..जिद जो कि थी
खुशियाँ खरीदने की आज,
नाही डाँटा..नाही मारा,
माँ ने मुझे समझाया,
प्यार से गले लगाया,
हाथ फिरा कर माथे पर,
स्नेह वत्सलता से..मुझे बताया,
खुशियाँ नहीं वो,
जो खरीदी जा सके चंद सिक्कों से,
खुशियाँ नहीं वो जो बिकती मिले,
हाट-बाजारों में,
खुशियाँ तो वो हैं,
जो भर दे पेट हमारा,
 हर सुबह और हर शाम को, #मेरी_कल्पना...
मेरे उस बालमन की दृष्टि से मेरे लिए खुशियाँ वो सही थीं... या
माँ की जिम्मेदारियों की दृष्टि से खुशियों का  सही अर्थ वो दो वक्त का भोजन था...

मेरी व्यक्तिगत दृष्टि से तो भोजन ही सही मायने में असल खुशियाँ थीं..
आज भी दुनियाँ मे बहुत से ऐसे लोग हैं.. जिन्हें आसानी से हर रोज भोजन नहीं मिल पाता.. आज खाते हैं तो कल के लिए सोचते हैं और दुआ करते हैं.. कि कल भी भोजन उपलब्ध हो जाये.. और उसके घर कोई भूखा न रहे...
एक माँ की दशा क्या होती होगी जब बच्चे उसके भूखे उसके सामने सो जायें..
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