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घर नहीं था वो, चंद दीवारे जुड़ी थी बस सर को छत देन

घर नहीं था वो, चंद दीवारे जुड़ी थी बस सर को छत देने के लिए,
सीमेंट दीवारों से ज़्यादा दिलों में था,
नफ़रतों का नहीं, मगर, शिकायतों का,
जिस तरह दुनिया में सबसे मुहब्बत नहीं होती उसी तरह सबसे नफ़रत कर पाना भी आसान तो नहीं होता, फिर क्या बनाता है इन रिश्तों को खोखला?

शिकायतें, हाँ, शिकायतें,
यही वो ज़ंक है जो रिश्तों को खोखला बना कर उन्हें खा जाया करता है।
हर घर में किसी न किसी रिश्ते में बस सीमेंट रह जाता है, सीमेंट शिकायतों का।
मगर, कभी सोचा है, क्या हो अगर घर बनाने वाले ही इस सीमेंट में जकड़ जाऐं तो?

©Swarnima Sharma #दिल_का_दर्द_शब्दों_में_बयाँ_करें_तो_करें_कैसे_
घर नहीं था वो, चंद दीवारे जुड़ी थी बस सर को छत देने के लिए,
सीमेंट दीवारों से ज़्यादा दिलों में था,
नफ़रतों का नहीं, मगर, शिकायतों का,
जिस तरह दुनिया में सबसे मुहब्बत नहीं होती उसी तरह सबसे नफ़रत कर पाना भी आसान तो नहीं होता, फिर क्या बनाता है इन रिश्तों को खोखला?

शिकायतें, हाँ, शिकायतें,
यही वो ज़ंक है जो रिश्तों को खोखला बना कर उन्हें खा जाया करता है।
हर घर में किसी न किसी रिश्ते में बस सीमेंट रह जाता है, सीमेंट शिकायतों का।
मगर, कभी सोचा है, क्या हो अगर घर बनाने वाले ही इस सीमेंट में जकड़ जाऐं तो?

©Swarnima Sharma #दिल_का_दर्द_शब्दों_में_बयाँ_करें_तो_करें_कैसे_