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swarnimasharma4310
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Swarnima Sharma

Writings that express the unexpressed

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Swarnima Sharma

रिम-झिम सावन बरस रहा, 
चहुँँ ओर शिव का जयकारा गूँज रहा,
श्रद्धालुओं के भक्ति भाव से,
मेरा भोला मस्ती में झूम रहा।

©Swarnima Sharma #Shiv 

#Sawankamahina
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Swarnima Sharma

तबाही को, वाह-वाही का रुख़ दें जो,
मेरे अवसाद को, ऊँचाई की ओर मोड़ दें जो,
आँसुओं को सावन की बारिश से ढ़कने वाले, 
कोई और नहीं, मेरे शिव हैं वो।

©Swarnima Sharma #Sawankamahina
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Swarnima Sharma

No more wait for the calls, 
No more love message and fake falls,

No more morning kisses,
No more goodnight hugs,
I have deleted from your life, all my bugs,

Nothing remains as US, 
Then why to be each others drug, 
Leave the addiction, do my reductions, 

You're free, as it's all over now.

©Swarnima Sharma #itsallovernow
#theend
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Swarnima Sharma

With a smile on the face, 
Her heart was holding the pain, 
The eyes, which were when sparkling bright, 
Tough memories were holded by the mind.

Something was getting burried with the time, 
She was so free outside, but burning deep inside.

All she knew was, time heals everything, 
One by one what she overcome of,
Was nothing but all the love she has lost.

No hopes, no dreams, no wishes were left now,
All she gathered up were nothing but the sorrows.

Now nothing is holded by her hands,
All her heart has, are the saddened moments.

©Swarnima Sharma #alone
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Swarnima Sharma

तेरा साथ जबसे मैंने पाया है,  
हर ख़्वाब मेरा मुकम्मल होता नज़र आया है, 

जिस्म से होकर, मेरी रूह में तू समाया है, 
परछाई में अपनी, तेरा अक्स मैंने पाया है, 

तनहाई से मेरी, कुछ दूर तू ले आया है, 
तुझे पाया है ऐसे जैसे सबसे अनमोल रत्न कमाया है, 

न थी मैं कुछ, बेरंग ख्याल के सिवा, 
मुझमें रंग भरने को ही, खुदा ने तुझे बनाया है,

पतझड़ को पीछे छोड़, बाहारों में ले आया है
जो साथ है मेरे हर पल, तेरा ही तो वो साया है, 

अपने इश्क़ से मेरे हर ग़म को, अपना तूने बनाया है,
खुशियों के असली मतलब से, रुबरु तूने कराया है

तेरा साथ जबसे मैंने पाया है,
हर ख़्वाब मेरा मुकम्मल होता नज़र आया है।

©Swarnima Sharma #Love
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Swarnima Sharma

ग़लत फ़हमी थी हमारी, वो मसरूफ़ हैं ख़्यालों में हमारे,
गुफ़त-गु जो हुई तो ज़िक्र अनजानों का निकला,
हमने समझा उन पर हक़ सिर्फ़ एक हमारा है,
उनका तो गैरों से भी याराना निकला।

©Swarnima Sharma #बेवफाई
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Swarnima Sharma

घर नहीं था वो, चंद दीवारे जुड़ी थी बस सर को छत देने के लिए,
सीमेंट दीवारों से ज़्यादा दिलों में था,
नफ़रतों का नहीं, मगर, शिकायतों का,
जिस तरह दुनिया में सबसे मुहब्बत नहीं होती उसी तरह सबसे नफ़रत कर पाना भी आसान तो नहीं होता, फिर क्या बनाता है इन रिश्तों को खोखला?

शिकायतें, हाँ, शिकायतें,
यही वो ज़ंक है जो रिश्तों को खोखला बना कर उन्हें खा जाया करता है।
हर घर में किसी न किसी रिश्ते में बस सीमेंट रह जाता है, सीमेंट शिकायतों का।
मगर, कभी सोचा है, क्या हो अगर घर बनाने वाले ही इस सीमेंट में जकड़ जाऐं तो?

©Swarnima Sharma #दिल_का_दर्द_शब्दों_में_बयाँ_करें_तो_करें_कैसे_
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Swarnima Sharma

टूटे दिल के भी अपने फसाने हैं, 
ज़्यादा कुछ नहीं ये बस लिखने के बहाने हैं। 

जिसे सामने से कह पाना है ज़रा सा मुश्किल, 
मेरी रात कि तनहाई के ये वो तराने हैं। 

वो जो है बेखबर हाल-ऐ-दिल से मेरे,
उस के ही दिए ये किस्से पुराने हैं।

नहीं रख्खा है कुछ इस दौलत, इस शौहरत में मेरे हम-नफ़स,
हमें तो दिल-ओ जान सिर्फ तुझपे लुटाने हैं।

टूटे दिल के भी अपने फसाने हैं, 
ज़्यादा कुछ नहीं ये बस लिखने के बहाने हैं।

©Swarnima Sharma #फ़साने #दिल_की_कलम_से 

#OneSeason
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Swarnima Sharma

समर्पण ही प्यार

मुझे प्यार से बहुत प्यार है। किसी का पास होना, जीवन के हर उतार-चढ़ाव में साथ होना किसे अच्छा नहीं लगता?
लेकिन बंधन में बंधने का किसी का दिल नहीं करता।
और करे भी क्यूँ? क्यूँ प्यार के नाम पर किसी के जीवन को तोड़ना-मरोड़ना है हमें?
प्यार तो नाम है समर्पण का। पर ये समर्पण क्या है?
समर्पण का तो अर्थ ही है न सर्व अर्पण, सब कुछ अर्पित करना। तो बिना स्वयं को जाने, बिना स्वयं को समझे, किसी और से प्यार कैसे कर सकती हूँ? अपना समर्पण कैसे कर सकती हूँ?
हाँ जो मैं स्वयं को जान लूँ तो समर्पण के योग्य हूँ,
क्यूँकि अब, स्वयं में पूर्ण हूँ मैं।

©Swarnima Sharma #समर्पण #प्यार😍

#समर्पण प्यार😍

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Swarnima Sharma

सागर है तुझमें बेशुमार प्यार का
मैं एक बूँद सी, मिलने को तुझमें तरसी जा रही हूँ;
मोह नहीं मुझे अपने अस्तित्व को खोने का,
अब जो भी मैं करूँ, तेरी ही ओर बढ़ती जा रही हूँ;

डूबे हैं लोग जिसकी गहराइयों में अब तक,
रस उस इश्क़ का तो मैं भी चखना चाह रही हूँ,
और बंधन में होकर भी रेहते हैं आज़ाद कैसे, कुछ ऐसी अद्भुत कलाएँ सीखना तुझसे चाह रही हूँ;

पूरे तो तुम भी नहीं हो, फिर किस बात का यह दिखावा है,
जिस समाज  के लिए बदलने चले हो फ़ैसले, उसने कब तन्हायी में हाथ तुम्हारा थामा है?

ये वक़्त, उम्र, एहसास लौट कर फिर नहीं हैं आते,
सब पड़ाव जीवन के, अकेले पार किए नहीं जाते;
थोड़ा लालच है मुझे, अपना तुम्हें बनाने का,
हक़ जो चाहिए, अपना तुम्हें कहलाने का;

बस एक बूँद सी ही तो हूँ मैं,
तुम्हारे प्यार के सागर में मिलना चाहती हूँ।

©Swarnima Sharma #milan #pyaarkaehsaas #pyaarzindagihai #sagar #boond
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