याद आ रहा वही बहार में न जाने क्यूं पास है जिसे न कौल का न ही करार का। मजलिसों में देखकर नज़र चुरा रहा है वो ये सिला मिला हमें हमारे ऐतबार का। दरमियां हमारे ठीक हो भी जाता सब अगर जान पाता ज़िम्मेदार कौन इस दरार का। ©BS NEGI दरार