ज़िन्दगी के चंद पन्ने पलटने की कोशिश थी, कि गुज़रा ज़माना सामने आ गया । अरसौं लगे जिस पल को भुलाने मे, वो आप को फिर से दौहरा गया । तलब थी कि दिखे तिरी एक झलक, नज़र आईने पर ठहरी,सामने तू आ गया । जहाँ अपना मिलना पाक न था, मैं वो गली, वो शहर, छोडकर आ गया । किसी के लिए पागल, किसी के लिए दीवाना था, बदनशीब तो तब हुआ, जब अफ़वाहों का शाया भी बेबाक पीछे आ गया । जिस ज़माने की ख़ातिर बिखर गया मैं, वही नादान बन रहम दिखाने आ गया । तिरे जाने का ज़ख्म ज़हन मे ऐसा था, ज़िन्दगी तो थी मेरी, मैं जीना भुलाकर आ गया । Kishan Singh Tomar Kapil Tyagi aparna tomar