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भाग्य की बात! वही अभागा मुँह के बल गिरा। आग भड़काक

भाग्य की बात! वही अभागा मुँह के बल गिरा। 
आग भड़काकर पुलिस लौट गई, किंतु उसके बाद 
कलकत्ते की रेल जैसे 
कभी इस ओर लौटकर नहीं आई। बूढ़े की निराश आँखें 
सूने पेड़ों से टकराकर आसमान से उलझ गईं। 

वह अपना ह्रदय सँभाले रह गया था।

बूढ़े की आँखों में पानी भर आया। उसने जोर से नाक साफ की और फिर उसके दिमाग में वह चित्र जल्दी जल्दी दौड़ने लगा। 
बसंत सुनकर विक्षुब्ध हो गया था। 
उसके हाथ का गँड़ासा अपने आप उठ गया।
 
"भैया को मार डाला ?" 
उसके शब्द गले में अटक गए थे।

#पुरानी_कहानी
#विषाद_मठ #coronavirus #पुरानी_कहानी
#विषाद_मठ#रांघेय_राघव
भाग्य की बात! वही अभागा मुँह के बल गिरा। 
आग भड़काकर पुलिस लौट गई, किंतु उसके बाद 
कलकत्ते की रेल जैसे 
कभी इस ओर लौटकर नहीं आई। बूढ़े की निराश आँखें 
सूने पेड़ों से टकराकर आसमान से उलझ गईं। 

वह अपना ह्रदय सँभाले रह गया था।

बूढ़े की आँखों में पानी भर आया। उसने जोर से नाक साफ की और फिर उसके दिमाग में वह चित्र जल्दी जल्दी दौड़ने लगा। 
बसंत सुनकर विक्षुब्ध हो गया था। 
उसके हाथ का गँड़ासा अपने आप उठ गया।
 
"भैया को मार डाला ?" 
उसके शब्द गले में अटक गए थे।

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