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यह मन तुझमें ऐसा खोया, समझ परे सब, मैं बस रोया, ते

यह मन तुझमें ऐसा खोया,
समझ परे सब, मैं बस रोया,
तेरी प्रीत ही याद में डोले,
खुले आंख या जब भी सोया।। 


मैं कितने जन्मों से प्यासा,
तुम थे बंद घड़े में पानी,
पास ही थे, बस प्राप्त नहीं थे,
मनन शून्य था, मैं अज्ञानी।। 

भूमि, आग, गगन, वायु, नीर तुम,
रमते घट घट, प्रान संग स्वामी,
सुरभि प्रेमवश देखे वत्सल,
नियति प्रदत्त, मौन पर बानी।। 

तुम इतने रमणीय, मनोहर,
दरस की इच्छा बढ़ती जाए,
पलक झपकते ही खुलने को,
आतुर हैं, ये कैसा मोहा।। 

जीवनदायनी शक्ति से पूरित,
अन्तर्यामी, किधर छुपे हो,
मेरे मन को, बांध मनमोहन,
नाच नचाते, जैसा चाहो।। 

व्यवहारिक सा, कुछ ना लगता,
जीता जगता, सपना लगता, 
प्रेम के पथ, ’मन’ बढ़े सोचता,
क्या पाया है, क्या था बोया।।

©Tara Chandra
  #DevineLove