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White जैसे ही वृद्धा ने आँखें मूंदी कुछ पलकों से

White 
जैसे ही वृद्धा ने आँखें मूंदी
कुछ पलकों से बरसीं बून्दी
कुछ के लब लगे फड़कने
आंखे कुछ की लगी चमकने
बुढ़िया तो थी बड़ी कंजूस
कभी न रखा हमको खुश
न जाने कितने गहने गढ़ाई
सन्दूक की चाभी कहाँ छिपाई
शायद रखा हो सोने का घड़ा
कभी न किसी को पता पड़ा
सब की सुन मैं झल्लाई
कैसे ये रिस्तेदार हैं भाई
एक घड़े सा होता नारी जीवन
नाजुक गहरा होता तन मन
नाजों से रखता परिवार
देकर हर घड़ी प्यार-दुलार
पीहर में भरते सब उसमें
मान मर्यादा घर के संस्कार
बचते बचाते ठोकरों से
करती वो हर छण पार
आधी भरी वो सज धज
आ पहुंची साजन द्वार
सोने से सुनहरे ख्वाबों को
नए रिस्तों पर दिया वार
समय शरीर नींद-चैन सब
सोने से क्या थे कमतर
सबको सँजोये रखा खुद में
अपना सब कुछ किया निसार
जीर्ण-श्रृंण हुई आज वो
झेलते हुए वक्त की मार
अब चूर कर इस घड़े को
धातु(सोना)ढूंढ़ रहा परिवार

©alka mishra
  #akshaya_tritiya_2024