मेरा गीत इक पुराना, वो गुनगुना रही थी।। वो तितलियों को अपनी, धड़कन सुना रही थी।।। छत पर टहल-टहल कर, भँवरे बुला रही थी।। वो लोरियों से अपनी, चंदा सुला रही थी।।। वो अपनी पायलों से, वीणा बजा रही थी।। नैनों के नूर से वो, दीपक जला रही थी।।। अपनी सफेद चुनरी, जब लह-लहा रही थी।। वो समीर को भी अपने, मन से बहा रही थी।।। इक लट फिसल-फिसल कर, चेहरे पे आ रही थी।। चंदा पे जैसे कोई, बदली सी छा रही थी।।। वो सुर्ख़ लालिमा जब, रुख पर लगा रही थी।। इक सांझ चोरनी सी, लाली चुरा रही थी।। मुंडेर पर झटक कर, गेसू सुखा रही थी।।। लहरें मचल-मचल कर, साहिल भिगा रही थी।।। जब आईने के आगे, बिंदी लगा रही थी।। सूरज को बांध जैसे, मुख पर सजा रही थी।।। वो बेवजह सी बातों पर खिलखिला रही थी।। बस मुस्कुराहटों से गुलशन खिला रही थी।।। पलकें उठा रही थी, तो दिन खिला रही थी।। पलकें झुका रही थी तो रात ला रही थी।।। वो 😍😍😍 #nojoto #hindikavita #shringaar #psr