दंश (In Caption) Part - I Ch - 16 Finale झींगुर की आवाज़ के बीच नीम की पत्तियों की उस झुरमुट निकल कर हवा ने खिड़की के पल्लों पर दस्तक दी तो जैसे यादों का ज्वार वापस समय के उस काले समुद्र की ओर वापस जाने लगी.. "नेहा मेमसाब.... नेहा मेमसाब..." शांति का स्वर मेरे कानों में ऐसा गूंजा जैसे वह मुझसे कहीं दूर शुन्य में खड़ी हो... फिर एक बच्चे की रोने की आवाज़ मेरे कानों से टकराई जो मुझे वर्तमान में खींच लाई...। मैं ने तुरंत घड़ी की ओर देखा, शाम के सात बज रहे थे, समय कैसे बीता ये पता ही नहीं चला; अवनि को भूख लगी होगी, मैं पलटी तो देखा शांति वहीं खड़ी अवनि को बोतल से दूध पिला रही थी...। "क्या मेमसाब कब से आवाज़ दे रही थी.. कहां खो गए थे आप...? बाबू को मैंने दूध दे दिया है...अब मैं जा रही हूं...कल आ जाऊंगी सुबह..।"